कोई मां को खोकर घर के लिए निकला, किसी ने घर पहुंचने से पहले तोड़ा दम
'घर बाहर जाने के लिए उतना नहीं होता जितना लौट के वापस आने के लिए होता है।' विनोद कुमार शुक्ल के लिखे ये शब्द उन मजदूरों से बेहतर कोई नहीं समझ सकता जो लॉकडाउन के बीच अपने घर वापस लौटने की जद्दोजहद में जुटे हैं। कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने के लिए सरकार ने 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया है। इसके साथ कारखाने और दूसरे काम ठप्प हो गए और मजदूर घर लौटने को मजबूर हैं।
देश देख रहा है मजदूरों का पलायन
पिछले कुछ दिनों में देश ने मजदूरों का पलायन देखा है। बड़े शहरों की मशीनरी चलाए रखने वाले मजदूर अब घर वापस लौट रहे हैं। पैदल अपने घर जा रहे मजदूरों के लिए कई जगहों पर सरकारों और दूसरे लोगों ने कुछ इंतजाम किए हैं, लेकिन कोई भी इंतजाम इतना पुख्ता नहीं है कि इन्हें इनके घर पहुंचा सके। इनमें से कोई अपनी मां को खोकर घर के लिए निकला है तो किसी को घर ही नसीब नहीं हुआ।
मां को खोकर घर के लिए निकले मुरकीम
यह कहानी वाराणसी के रहने वाले मुरकीम की है। मुरकीम छत्तीसगढ़ के रायपुर से वाराणसी के लिए पैदल निकले हैं। दोनों शहरों के बीच 654 किलोमीटर का फासला है और बस से यह दूरी तय करने में 14 घंटे लगते हैं। 25 मार्च को मुरकीम की मां का देहांत हुआ था। अगले दिन मुरकीम अपने दो दोस्तों के साथ घर के लिए निकले। तीन दिन बाद वो वाराणसी से बहुत दूर छत्तीसगढ़ के ही कोरिया तक पहुंचे हैं।
घर लौटने के लिए जमा हुई मजदूरों की भीड़
पिछले कुछ घंटों से दिल्ली के आनंद विहार बस स्टैंड के बाहर उत्तर प्रदेश के लिए जाने वाले मजदूरों की तस्वीरें मीडिया और सोशल मीडिया पर तैर रही हैं। सरकारें मजदूरों से घर नहीं लौटने की अपील कर रही हैं, लेकिन सरकार के वादे पर भरोसा करने की बजाय ये मजदूर अपनी जान का जोखिम उठाने को तैयार हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने शनिवार को इन मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए कुछ बसों का इंतजाम किया था।
घर के लिए चले, लेकिन पहुंच नहीं पाए
ऐसी ही एक दर्दभरी कहानी रणवीर सिंह की है। दिल्ली के एक ढ़ाबे पर काम करने वाले रणवीर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के रहने वाले थे। लॉकडाउन घोषित होने के बाद पुलिस ने उनका ढाबा बंद करवा दिया था। इसके बाद रणवीर अपने दो और साथियों के साथ घर के लिए निकले, लेकिन 200 किलोमीटर चलने के बाद उनकी छाती में दर्द उठा और उनकी मौत हो गई। उनका घर अब भी 100 किलोमीटर दूर था।
हजारों में से ये महज दो कहानियां हैं
मुकरीम और रणवीर, ये दो लोग उन हजारों मजदूरों में से हैं जो रोजी-रोटी के घर छोड़कर शहर आए थे। महामारी फैलने के कारण शहर बंद हो गए और शहरों में इन मजदूरों की रोजी-रोटी पर भी संकट के बादल छा गए। ऐसे में इनके पास सिवाय अपने घर लौटने के कोई दूसरा चारा नहीं है। पिछले कुछ दिनों से ऐसी सैंकड़ों कहानियां रोजाना एक शहर से दूसरे शहर का पैदल सफर कर रही हैं।