महाराष्ट्र: पुणे के डॉक्टर और बेटी में जीका वायरस की पुष्टि, हालात स्थिर
क्या है खबर?
महाराष्ट्र के पुणे में 46 वर्षीय एक डॉक्टर और उनकी बेटी में जीका वायरस की पुष्टि हुई है। हालांकि, दोनों की सेहत स्थिर बताई जा रही है।
डॉक्टर एंडरवाने इलाके के रहने वाले हैं। उनकी बेटी की उम्र 15 वर्ष है। शहर के चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि ये 2 मामले सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने निगरानी शुरू कर दी है।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा शहर में कोई अन्य मामला नहीं पाया गया है।
वायरस
लक्षण दिखने पर हुई थी जांच
NDTV के मुताबिक, चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि डॉक्टर में बुखार और चकत्ते जैसे लक्षण दिखाई देने के बाद उनको एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
यहां डॉक्टरों ने उनके रक्त के नमूने शहर स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV) को जांच के लिए भेजा।
पुणे नगर निगम (PMC) के चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि 21 जून को उनकी रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि वह जीका वायरस से पीड़ित हैं।
जांच
परिवार की की गई जांच में बेटी पीड़ित मिली
PMC अधिकारी ने बताया कि व्यक्ति के संक्रमित पाए जाने के बाद उनके परिवार के 5 अन्य सदस्यों के रक्त के नमूने लिए गए, जिसकी रिपोर्ट आने पर पता चला कि उनकी 15 वर्षीय बेटी भी संक्रमित है।
अधिकारी ने बताया कि शहर में एहतियात के तौर पर जागरूकता फैलाई जा रही है और मच्छरों का प्रजनन रोकने के उपाय किए जा रहे हैं।
कुछ मच्छरों के नमूने भी जांच के लिए भेजे गए हैं।
बीमारी
महाराष्ट्र में पिछले साल मिले थे कई मामले
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, 2023 में महाराष्ट्र में जीका वायरस के कुल 10 मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें 4 मामले कोल्हापुर, 2 मुंबई, 2 इचलकरंजी और एक-एक मामला पंढरपुर और पुणे में सामने आए थे।
नवंबर 2024 में एक बुजुर्ग महिला इससे संक्रमित मिली थीं। उन्होंने अक्टूबर में केरल की यात्रा की थी।
डॉक्टर और उनकी बेटी के यात्रा इतिहास के विषय में जानकारी सामने नहीं आई है। डॉक्टरों ने गर्भवती महिलाओं को सतर्क रहने को कहा है।
संक्रमण
क्या है जीका वायरस?
जीका वायरस मुख्यत: एडीज मच्छरों के काटने से फैलता है, जो डेंगू और चिकनगुनिया भी फैलाते हैं।
ये वायरस फ्लेविविरिडी वायरस फैमिली से है, जो पहली बार 1947 में युगांडा के जीका जंगल के बंदरों में मिला था। इससे इसका नाम 'जीका' रखा गया। इंसानों में पहला मामला 1952 में मिला था।
वायरस के 80 प्रतिशत रोगियों में कोई लक्षण नहीं होते। शेष मरीजों में बुखार, शरीर दर्द, आंखों में जलन और त्वचा पर दाने जैसे हल्के लक्षण होते हैं।