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    बच्चों को भारी बस्तों से मिलेगा छुटकारा, लागू होंगे नए नियम
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    बच्चों को भारी बस्तों से मिलेगा छुटकारा, लागू होंगे नए नियम

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 26, 2018
    05:04 pm
    बच्चों को भारी बस्तों से मिलेगा छुटकारा, लागू होंगे नए नियम

    स्कूली बच्चों को अब जल्द ही भारी बस्तों से छुटकारा मिलने वाला है। मानव संसाधन विकास (HRD) मंत्रालय ने स्कूली बस्ते के भार को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। मंत्रालय ने पहली से 10वीं कक्षा तक के लिए बच्चों के बस्ते के वजन को निर्धारित करने के साथ होमवर्क को लेकर भी नियम बनाए हैं। मंत्रालय ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों से कहा है कि वे बस्ते के वजन को लेकर भारत सरकार के निर्देशों का पालन करें।

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    अब कितना होगा बस्तों का भार?

    मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नए निर्देशों के अनुसार, पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों के बस्ते का वजन 1.5 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। इसी तरह तीसरी से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के बस्ते का वजन दो से तीन किलोग्राम, छठी और सातवीं कक्षा के बच्‍चों के बस्ते का वजन चार किलोग्राम, आठवीं और नौवीं के छात्रों के बस्‍ते का वजन 4.5 किलोग्राम और 10वीं के छात्रों के बस्‍ते का वजन पांच किलोग्राम तक होना चाहिए।

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    क्या हैं होमवर्क से जुड़े नए निर्देश?

    मंत्रालय ने बस्ते के भार के साथ-साथ होमवर्क को लेकर भी नियम बनाए हैं। नए नियमों के मुताबिक, पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जा सकता। इन कक्षाओं में केवल भाषा और गणित पढ़ाया जाएगा। वहीं तीसरी से पांचवीं कक्षा के बच्चों को भाषा, पर्यावरण विज्ञान और गणित NCERT के सिलेबस से ही पढ़ाने को कहा गया है। कहा गया है कि बच्चे स्कूल में कोई भी अतिरिक्त किताब और भारी सामान लेकर न आएं।

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    बस्ते को लेकर क्या कहते हैं CBSE के नियम?

    स्कूली बस्ते के भार को कम रखने के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने भी नियम बनाए हैं। पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों के लिए स्कूल बस्ते न हो और उनको अपना बस्ता स्कूल में छोड़ने की अनुमति हो। पहली और दूसरी कक्षा के बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाए। तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चों के लिए होमवर्क की जगह कुछ और विकल्प दिया जाए। बस्ते का वजन कम करने के लिए टाइम-टेबल बनाते समय सावधानी बरतें।

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    लगभग 25 सालों से उठ रहा है भारी बस्ते का मामला

    भारी बस्ते की वजह से बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। भारी बस्ते का मामला सबसे पहले साल 1993 में यशपाल समिति ने उठाया था। इस समिति का प्रस्ताव था कि पाठ्यपुस्तकों को स्कूल की संपत्ति समझा जाए और बच्चों को किताब रखने के लिए स्कूलों में लॉकर्स दिए जाएं। इसमें छात्रों के होमवर्क और क्लासवर्क के लिए भी अलग टाइम-टेबल बनाने की मांग की गई थी, ताकि बच्चों को रोजाना किताब घर न ले जानी पड़े।

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    साल 2005 में आया NCF का सर्कुलर

    भारी बस्ते की समस्या को देखते हुए 2005 में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) ने एक सर्कुलर जारी किया था। इसमें बच्चों के शारीरिक और मानसिक दबाव को कम करने के सुझाव दिए गए थे। कई राज्यों ने इसके अाधार पर अपने सिलेबस और किताबों में बदलाव किए थे। अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक, बच्चों के बस्ते का वजन बच्चों के वजन के 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए, लेकिन भारत में बस्ते का भार इससे ज्यादा होता है।

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