
भीषण गर्मी भारत को कैसे प्रभावित कर रही है और क्या है इसका समाधान?
क्या है खबर?
भारत की करीब 76 प्रतिशत आबादी इस समय अत्यधिक से बहुत भीषण गर्मी से जूझ रही है। आने वाले दिनों में गर्मी के और प्रचंड रूप धारण करने की संभावना है।
पिछले सप्ताह दिल्ली के विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) की ओर से जारी वार्षिक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लोगों को गर्मी से सबसे अधिक खतरा है।
हालात
वर्तमान में क्या हैं हालात?
वर्तमान में राजस्थान में तो पारा 47 डिग्री के पार पहुंच चुका है।
इसी तरह दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और बिहार सहित अन्य उत्तरी राज्यों में तापमान 40 डिग्री से ऊपर चल रहा है। इससे लोग बेहाल हैं। देश की राजधानी में 10 जून को सीजन का सबसे गर्म दिन रहा।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) सभी राज्यों में लू का अलर्ट जारी किया है। कूलर और AC से भी लोगों को राहत नहीं मिल रही है।
खतरा
देश के 734 जिलों में है हीटवेव का खतरा
रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने एक हीट रिस्क इंडेक्स (HRI) विकसित किया, जिसमें भारत के 734 जिलों में हीटवेव का खतरा है। इनमें हीट स्ट्रेस ओर हीट स्ट्रोक प्रमुख है।
हीट स्ट्रेस में शरीर का तापमान 37 डिग्री से अधिक होता है और बेचैनी, ऐंठन और थकावट होती है।
इसी तरह शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर जाने पर हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है। ऐसे में आने वाला समय लोगों के लिए काफी घातक हो सकता है।
जानकारी
इन शहरों में 2030 तक दोगुनी होगी गर्मी के दिनों की संख्या
IPE ग्लोबल और एसरी इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, सूरत, ठाणे, पटना और भुवनेश्वर जैसे शहरी क्षेत्रों में 2030 तक गर्मी के दिनों की अवधि में दोगुनी वृद्धि होने का अनुमान है।
बढ़ोतरी
30 सालों में 15 गुना बढ़ गई भीषण गर्मी
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 सालों में भीषण गर्मी वाले दिनों में 15 गुना बढ़ोतरी हुई है, जबकि पिछले दशक में 19 गुना इजाफा हुआ है।
लंबे समय तक चलने वाली ये गर्मी अब देश को अनियमित और तेज बारिश की ओर भी धकेल रही है।
साल 2030 तक टियर-1 और टियर-2 के 72 प्रतिशत शहरों में मानसून के दौरान भी गर्मी जैसी स्थितियों का ही सामना करना पड़ सकता है। साल 2040 में यह प्रतिशत 79 पहुंच सकता है।
कारण
क्या है भीषण गर्मी के दिनों की संख्या बढ़ने का कारण?
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) के शोधकर्ताओं के अध्ययन में सामने आया है कि 2012 और 2022 के बीच सापेक्ष आर्द्रता बढ़कर 40-50 प्रतिशत हो गई, जो 1982 से 2011 तक 30-40 प्रतिशत थी।
यह बढ़ोतरी विशेषकर उत्तर भारत के सिंधु-गंगा के मैदान में हुई है। उच्च सापेक्ष आर्द्रता में मानव शरीर पर गर्मी का तनाव तेजी से बढ़ता है।
इसी तरह उच्च जनसंख्या घनत्व, पेड़ों की कटाई और तेजी से बढ़ता शहरीकरण भी इसका प्रमुख कारण रहा है।
परिणाम
मौसम संबंधी घटनाओं में पिछले साल हुई 3,000 मौतें
CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल भारत में चरम मौसम संबंधी घटनाओं में 3,000 लोगों की मौत, 20 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद और 80,000 से अधिक घर तबाह हो गए।
यह भी सामने आया कि 2024 के 88 फीसदी दिनों में भारत के किसी ना किसी हिस्से में चरम मौसमी घटनाएं घट रही थीं।
वर्तमान में पूरा उत्तर भारत भीषण गर्मी से जूझ रहा है और ऐसी गर्मी के दिन आने वाले सालों में और बढ़ने की आशंकाएं हैं।
अन्य खतरें
भीषण गर्मी के कारण बने हुए हैं प्रदूषण सहित ये अन्य खतरे
रिपोर्ट के अनुसार, भीषण गर्मी से प्रदूषण में भी इजाफा हुआ है। 2021 से अब तक दिल्ली समेत भारत के 13 शहरों में हर 3 में से एक दिन लोगों को प्रदूषित और असुरक्षित हवा में सांस लेना पड़ता है।
विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि वायु प्रदूषण के कारण दिल्लीवासियों का जीवन औसतन लगभग 8 साल घट गया है।
पिछले एक दशक में भारत में गर्मी के साथ बारिश और बाढ़ की तीव्रता में भी बढ़ोतरी हुई है।
समाधान
क्या है भीषण गर्मी सहित मौसमी आपदाओं से निपटने का समाधान?
CSE की निदेशक सुनीता नारायण ने DW से कहा, "भारत सरकार को मौजूदा हालातों को समझकर सुधार की दिशा में जरूरी कदम उठाने होंगे। सरकार को अनुकूल रणनीतियों पर ज्यादा निवेश करना होगा, खासतौर पर विश्वसनीय आंकड़े जुटाने में और उसका विश्लेषण करने में।"
उन्होंने कहा, "जब तक हमारे पास सटीक आंकड़ा नहीं होगा, तब तक कोई भी नीति या समाधान निकालना संभव नहीं है। इसलिए हमें आंकड़ों और पारदर्शिता की जरूरत है। हमे सुधार की ओर कदम उठाने होंगे।"
योजना
बड़े स्तर पर लागू करनी होगी योजनाएं- देवरस
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के जलवायु वैज्ञानिक अक्षय देवरस ने कहा, "जलवायु के प्रति सहजता अब कोई विकल्प नहीं है, बल्कि अस्तित्व का सवाल बन गया है।"
उन्होंने कहा, "हमें बड़े स्तर पर योजनाओं को लागू करना होगा। जलवायु के संकटों के प्रति चेतना रखने वाले संस्थानों की स्थापना करने के साथ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने वाले संसाधनों में अधिक निवेश करना होगा। अगर, हम अब भी नहीं संभले तो हम अस्थिर जलवायु की ओर बढ़ रहे होंगे।"