'मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं' कहने वाले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त शेषन का निधन
उनके बारे में कहा जाता था कि नेता भगवान के बाद टीएन शेषन से डरते थे। चुनाव आयोग को उसका रूतबा दिलाने वाले भारत के 10वें मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे शेषन ने रविवार रात आखिरी सांस ली। उन्हें अब तक का सबसे कड़क चुनाव आयुक्त माना जाता है। उनके कार्यकाल के दौरान कई चुनाव सुधार लागू हुए। आइये, पूरी खबर जानते हैं।
रमन मैग्सेसे से सम्मानित किए गए थे शेषन
शेषन का पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन था। 15 दिसंबर, 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले में जन्मे शेषन तमिलनाडु कैडर से 1955 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी थे। शेषन ने भारत के 18वें कैबिनेट सचिव के रूप में 27 मार्च 1989 से 23 दिसंबर 1989 तक सेवा दी। इसके बाद दिसंबर 1990 से दिसंबर 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। सरकारी सेवाओं के लिए उन्हें साल 1996 में रमन मैग्सेसे अवॉर्ड मिला था।
इन बड़े पदों पर शेषन ने दी थी सेवाएं
शेषन ने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की थी। इसी कॉलेज में उन्होंंने कुछ समय तक बतौर लेक्चरर काम किया था। अपने करियर के दौरान शेषन ऊर्जा मंत्रालय के डायरेक्टर, अंतरिक्ष विभाग के संयुक्त सचिव, कृषि विभाग के सचिव समेत कई पदों पर रहें। उन्होंने दो साल तक चेन्नई में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर का पदभार भी संभाला था। वो इन दो सालों को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय मानते थे।
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहते हुए बस ड्राइव करना सीखी
चेन्नई में ट्रांसपोर्ट कमिश्नर रहने के दौरान उनके नीचे 40,000 कर्मचारी काम करते थे। एक बार किसी ड्राइवर ने उनसे कहा कि आप बस इंजन को नहीं समझते और न ही आपको बस ड्राइव करनी आती है तो आप ड्राइवरों की समस्या कैसे समझेंगे। इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए शेषन ने न सिर्फ बस चलाना सीखा बल्कि वर्कशॉप में जाकर उन्होंने इंजन के बारे में जानकारी ली।
केआर नारायणन से राष्ट्रपति चुनाव हारे थे शेषन
योजना आयोग के सदस्य रहे शेषन ने 1997 में राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन उन्हें केआर नारायणन के हाथों हार का सामना करना पड़ा। रिटायर होने के बाद उन्होंने एक ट्रस्ट बनाया और सामाजिक कार्य करते रहे।
पहचान पत्र लागू करवाने में शेषन की थी अहम भूमिका
शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान ही चुनाव में पहचान पत्र का इस्तेमाल आवश्यक जरूरी कर दिया था। जब नेताओं ने इस फैसले को लागू करने में आने वाली लागत का हवाला देकर इसका विरोध किया तो शेषन ने कहा कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए गए तो देश में 1995 के बाद चुनाव नहीं होंगे। शेषन के बारे में कहा जाता था कि उन्हें मामूली शक होने पर वो चुनाव रद्द कर देते थे।
शेषन का दूसरा नाम जानते हैं आप?
बीबीसी पर छपे लेख के मुताबिक, शेषन ने ऐलान किया था, "मैं नाश्ते में नेताओं को खाता हूं।" उनके इस ऐलान के बाद उनका नाम 'अल्सेशियन' रख दिया गया था। मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए उन्होंने कई बड़े नेताओं पर अपना हंटर चलाया था। जब उनसे पूछा गया कि वो हमेशा इतने कड़े फैसले क्यों लेते हैं तो उन्होंने कहा कि वो वही करते हैं जो कानून उनसे करवाता है। उनका कहना था कि वो कानून नहीं टूटने देंगे।