कोरोना वायरस से जिंदगी की जंग हारे देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी
क्या है खबर?
देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी आज सुबह कोरोना वायरस से जिंदगी की जंग हार गए। वह 91 साल के थे और दिल्ली के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।
पद्म विभूषण से सम्मानित सोराबजी को देश के सबसे बड़े कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों में माना जाता था। हालांकि बढ़ती उम्र के कारण वह पिछले कुछ समय से सक्रिय नहीं थे।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत तमाम हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री बोले- गरीबों और पिछड़ों की मदद के लिए अग्रिम मोर्चे पर रहे सोराबजी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर सोराबजी के निधन पर शोक व्यक्त किया।
अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, 'श्री सोली सोराबजी एक शानदार वकील और बुद्धजीवी थे। कानून के जरिए वह गरीबों और पिछड़ों की मदद करने में अग्रिम मोर्चे पर थे। उन्हें भारत के अटॉर्नी जनरल के तौर पर उनके उल्लेखनीय कार्यकालों के लिए याद किया जाएगा। उनके निधन से दुख हुआ है। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं।'
श्रद्धांजलि
कानून व्यवस्था ने एक सितारा खोया- राष्ट्रपति
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी ट्वीट कर सोराबजी को श्रद्धांजलि दी। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, 'सोली सोराबजी के निधन से भारत ने अपनी कानूनी व्यवस्था का एक सितारा खो दिया। वह उन चुनिंदा लोगों में शामिल थे जिन्होंने संवैधानिक कानून और न्याय व्यवस्था के विकास को गहरे तरीके से प्रभावित किया। पद्म विभूषण से सम्मानित वह सबसे प्रख्यात न्यायविदों में शामिल थे। उनके परिवार और सहयोगियों के प्रति मेरी संवेदनाएं।'
वकालत
सोली सोराबजी ने 1953 में शुरू की थी वकालत
1930 में मुंबई के एक पारसी परिवार में जन्मे सोली सोराबजी ने 1953 में वकालत शुरू की थी। 1971 में उन्हें वरिष्ठ वकील का दर्जा मिला और 1977-1980 के बीच जनता पार्टी की सरकार में वह देश के सॉलिसिटर जनरल रहे।
सोराबजी दो बार देश के अटॉर्नी जनरल भी रहे। पहली बार 1989 से 1991 तक तीसरे मोर्चे की सरकारों में और फिर 1998 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह इस पद पर रहे।
करियर
संवैधानिक मामलों के सबसे बड़े वकील थे सोराबजी
सोराबजी को संवैधानिक अधिकारों का एक बड़ा वकील माना जाता था। जिन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संसद संविधान के मौलिक ढांचे को प्रभावित करने वाला कानून नहीं बना सकती और सम्मान से जीने का हक एक संवैधानिक अधिकार है, उन दोनों मामलों में सोराबजी ने इनके पक्ष में दलीलें दी थीं।
उनकी ख्याति ऐसी थी कि संवैधानिक मामलों पर जज उनका पक्ष जरूर सुनते थे। 1984 सिख दंगों के पीड़ितों को भी उन्होंने कानूनी मदद दी।
जानकारी
अभिव्यक्ति और मीडिया की स्वतंत्रता के भी बड़े पक्षधर थे सोराबजी
सोराबजी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भी बड़े पक्षधर थे। उन्होंने कई मामलों में कोर्ट में मीडिया की स्वतंत्रता का बचाव किया और सेंसरशिप के आदेशों को रद्द कराने में अहम भूमिका निभाई। उन्हें 2002 में दूसरे सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।