भारत में प्रतिदिन यौन शोषण का शिकार हुए चार बच्चों को नहीं मिलता है न्याय- अध्ययन
क्या है खबर?
भारत में जिस गति से बच्चों के यौन शोषण के मामले बढ़ रहे हैं, उस गति से पुलिस उनमें कार्रवाई नहीं कर रही है।
यही कारण है कि वर्तमान में देश में प्रतिदिन यौन शोषण के शिकार चार बच्चे न्याय से वंचित रह जाते हैं।
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (KSCF) द्वारा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2017 से 2019 तक के POCSO एक्ट से संबंधित डाटा का विश्लेषण करने पर यह चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है।
जानकारी
बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ POCSO एक्ट में दर्ज होते हैं मामले
बता दें बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज होता है। NCRB के अनुसार 2019 में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में यौन शोषण की 32 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इनमें 99 प्रतिशत मामले लड़कियों के यौन शोषण के हैं।
हालत
पुलिस ने चार्जशीट दाखिल करने से पहले ही बंद कर दिए मामले
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार KSCF की यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जारी की गई है।
इसके तहत देश में साल 2017 से 2019 के बीच पुलिस द्वारा POCSO एक्ट के तहत दर्ज मामलों को बिना चार्जशीट प्रस्तुत किए बंद करने का प्रतिशत बढ़ रहा है। हर साल बच्चों के यौन शोषण के तकरीबन 3,000 मामले निष्पक्ष सुनवाई के लिए अदालत तक नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में प्रतिदिन यौन शोषण के शिकार चार बच्चों को न्याय नहीं मिलता है।
कारण
यौन शोषण के मामलों में पर्याप्त सबूत और सुराग नहीं जुटा पाती है पुलिस
बच्चों को न्याय नहीं मिलने का कारण यह है कि अपार सुविधाओं के बाद भी पुलिस मामलों में पर्याप्त सबूत और सुराग नहीं जुटा पाती है। ऐसे में पुलिस उन मामलों में चार्जशीट पेश किए बिना ही अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर उन्हें बंद कर देती है।
NCRB के रिकॉर्ड की माने तो 2019 में पुलिस ने 43 प्रतिशत मामलों को अपराध घटित होने के बाद भी अपनी कमजोरी के कारण बंद कर दिया। यह पुलिस पर बड़ा प्रश्न चिह्न है।
जानकारी
पुलिस ने 33 प्रतिशत मामलों को झूठा बताकर किया बंद
KSCF के अध्ययन के अनुसार 2019 में पुलिस ने बच्चों के यौन शोषण के 33 प्रतिशत मामलों को झूठा बताते हुए बंद कर दिया। हालांकि, 2017 में ऐसे में मामलों की संख्या 40 प्रतिशत थी। ऐसे में समय के साथ इनमें कमी आ रही है।
बोझ
अदालतों पर बढ़ रहा है POCSO एक्ट में दर्ज मामलों का बोझ
KSCF ने मामलों में पुलिस की निस्तारण प्रक्रिया और भारत में POCSO मामलों की स्थिति पर सर्वे किया है।
इसमें सामने आया है कि भारत में POCSO मामलों को लेकर अदलतों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। नियमानुसार बच्चों के यौन शोषण से जुड़े मामले की जांच से लेकर अदालती प्रकिया एक साल में खत्म हो जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
साल 2019 में देशभर की अदालतों में POCSO एक्ट के 89 प्रतिशत मामले लंबित थे।
सबसे ज्यादा
पांच राज्यों में दर्ज है POCSO एक्ट के 51 प्रतिशत मामले
रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में POCSO एक्ट के कुल मामलों के 51 प्रतिशत मामले हैं। यहां सजा की दर 30 से 64 प्रतिशत के बीच है, जो काफी कम है।
एक हकीकत यह भी है कि जिन मामलों में पीड़ित कमजोर या दलित समुदाय से होते हैं, वो किसी प्रभाव में आकर या किसी मजबूरी में समय आने पर अपने बयान को बदल देते हैं या घटना से मुकर जाते हैं।
इजाफा
बाल यौन शोषण के मामलों में हुई 19 प्रतिशत बढ़ोत्तरी
आंकड़ों से पता चलता है कि देश में यौन अपराधों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है।
सरकार ने बच्चों के यौन शोषण के मामले में जल्द न्याय के लिए 2018 में फास्टट्रैक कोर्ट बनाने की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक इसे अमलीजामा नहीं पहनाया गया।
POCSO एक्ट के तहत साल 2017 में 32,608, साल 2018 22 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ में 39,827 और 2019 में 19 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 47,335 मामले दर्ज हुए हैं।
जरूरत
त्वरित न्याय के लिए फास्ट ट्रैक और स्पेशल कोर्ट की जरूरत
KSCF की निदेशक ज्योति माथुर ने कहा, "पीड़ितों के न्याय को सुनिश्चित करने और प्रभावी ढंग से चुनौतियों का समाधान करने के लिए POCSO के तहत पंजीकृत सभी मामलों को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक या पुलिस उपायुक्त स्तर के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा से देखा जाना चाहिए।"
दूसरी ओर मामलों में त्वरित जांच के लिए जिला स्तर पर एक समर्पित यूनिट और शीघ्र न्याय दिलाने के लिए फास्ट ट्रैक और स्पेशल कोर्ट की जरूरत बनाए जाने चाहिए।