पति को बिना सबूत 'औरतबाज' और 'शराबी' कहकर बदनाम करना है क्ररूता- बॉम्बे हाई कोर्ट
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2005 में हुए तलाक को खारिज करने वाली एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि पति को बदनाम करना और आरोपों को साबित किए बिना उसे 'औरतबाज' और 'शराबी' कहना भी क्रूरता ही है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत द्वारा मंजूर किए गए पुणे के एक दंपत्ति के तलाक को बरकरार रखते हुए महिला की याचिका को खारिज कर दिया है।
महिला ने दायर की थी तलाक को खारिज करने की याचिका
पुणे निवासी महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर नवंबर, 2005 में पुणे की पारिवारिक अदालत द्वारा दिए गए सेवानिवृत्त फौजी अधिकारी की शादी को निरस्त करने के फैसले को चुनौती दी थी। महिला का आरोप था कि उसे अपने पति के 'औरतबाज' और 'शराबी' होने के कारण वैवाहिक अधिकारों से वंचित होना पड़ा था। अपील की सुनवाई के दौरान पुरुष की मौत होने पर कोर्ट ने उसे कानूनी उत्तराधिकारी को अर्जी में जोड़ने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने खारिज की महिला की याचिका
जस्टिस नितिन जामदार तथा जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने 12 अक्टूबर को दिए आदेश में 50-वर्षीय महिला की अपील को खारिज कर दिया और कहा कि पत्नी द्वारा पति के चरित्र पर अवांछित तथा झूठे आरोप लगाने के व्यवहार से समाज में पति की छवि को क्षति पहुंची तथा यह क्रूरता की श्रेणी में आता है। पीठ ने कहा कि महिला ने अपने बयान के अलावा कोई अन्य साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, जिससे उसका आरोप साबित हो सके।
पति ने वकील ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दी दलील
पुरुष के वकील ने हाई कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता महिला ने झूठे तथा मानहानिकारक आरोप लगाकर अपने पति को मानसिक पीड़ा पहुंचाई थी। हाई कोर्ट ने पारिवारिक अदालत के समक्ष पति द्वारा दिए गए बयान का उल्लेख करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने पति को उसके बच्चों और पोते-पोतियों से अलग कर दिया है। यह बड़ी क्ररूता है। क्ररूता में एक पक्ष दूसरे को इस कदर मानसिक पीड़ा देता है कि उसका साथ रहना मुश्किल हो जाता है।
हाई कोर्ट ने पति को माना प्रतिष्ठित व्यक्ति
हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का पति भारतीय सेना में मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुआ था और समाज में उसकी काफी प्रतिष्ठा थी। याचिकाकर्ता के उसके चरित्र से संबंधित अनुचित, झूठे और निराधार आरोप लगाने और उसे शराबी और औरतबाज कहने से उसकी समाज में प्रतिष्ठा खराब हुई है। कोर्ट ने कहा कि मामले पर विचार करते हुए सामने आया कि याचिकाकर्ता का आचरण हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (I-A) के तहत क्रूरता है।