मोदी सरकार के मंत्रियों ने माना, नहीं थी नागरिकता कानून के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन की उम्मीद
नागरिकता कानून के खिलाफ जबदस्त प्रदर्शनों के बीच भाजपा के कई नेताओं ने स्वीकार किया है कि सरकार को इतने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन होने की उम्मीद नहीं थी और वो अब पूरी तरह से डैमेज कंट्रोल मूड में है। इन नेताओं में मोदी सरकार में शामिल कुछ मंत्री भी हैं। केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान ने कहा है कि उन्हें या भाजपा के अन्य किसी सांसद को इतने बड़े स्तर पर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी।
बाल्यान बोले, भाजपा सांसद गुस्से को भांपने में नाकाम रहे
भाजपा नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में ये बातें कहीं हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार मुस्लिमों की तरफ से कुछ गुस्से के लिए तैयार थी, लेकिन व्यापक प्रदर्शनों के लिए नहीं जिन्होंने दो हफ्तों से ज्यादातर बड़े शहरों में उथल-पुथल मचाई हुई है। केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान ने कहा, "मुझे प्रदर्शनों की उम्मीद नहीं थी। केवल मैं ही नहीं बल्कि भाजपा के अन्य सांसदों भी इस तरह के गुस्से को भांपने में नाकामयाब रहे।"
डैमेज कंट्रोल मोड में भाजपा
तीन भाजपा सांसदों और दो केंद्रीय मंत्रियों ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि वो लोगों से बातचीत करके नागरिकता कानून और NRC पर असंतोष को दूर करने के लिए सभी जगह से पार्टी समर्थकों को जुटा रहे हैं। एक केंद्रीय मंत्री ने बताया कि सरकार अब पूरी तरह से डैमेज कंट्रोल मोड में है और भाजपा और उनके सहयोगियों ने लोगों को ये समझाने के लिए कि नागरिकता कानून भेदभाव करने वाला नहीं है एक अभियान शुरू किया है।
दूसरे केंद्रीय मंत्री बोले, राजनीतिक गणित का नहीं रखा गया ध्यान
दूसरे केंद्रीय मंत्री ने कहा, "मेरा मानना है कि इस कानून को पारित करते समय राजनीतिक गणित को ध्यान में नहीं रखा गया था।" वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेता मनमोहन वैद्य ने कहा, "हिंसक प्रदर्शन इसलिए नहीं हो रहे क्योंकि लोगों को नए कानून के बारे में ठीक से नहीं समझाया गया, बल्कि इसलिए हो रहे हैं क्योंकि निहित स्वार्थों वाली शक्तियों ने उन्हें जानबूझकर गलत जानकारी दी।"
क्या है नागरिकता कानून में?
बता दें कि नागरिकता कानून के संसद से पारित होने के बाद से ही देशभर में इसके खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। इस कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार के कारण भारत आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। देश के इतिहास में ये पहली बार है जब धर्म को नागरिकता से जोड़ा गया है।
मुस्लिमों को कानून से बाहर रखने पर उठ रहे सवाल
नागरिकता कानून के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन के तीन मुख्य बिंदु हैं। पहला ये कि इस कानून से मुस्लिमों को बाहर रखा गया है जो भारत संविधान के धर्मनिरपेक्षता और बराबरी के सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।
नागरिकता कानून और NRC को जोड़ना विरोध का दूसरा कारण
दूसरा ये कि सरकार और भाजपा की ओर से इसे NRC से जोड़कर पेश किया गया है जिसमें भारत में रह रहे सभी लोगों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। दस्तावेजों की कमी के कारण बड़ी संख्या में गरीबों के NRC से बाहर होने की आशंका जताई जा रही है। नागरिकता खोने के बाद गैर-मुस्लिम लोगों के पास नागरिकता कानून के जरिए फिर से नागरिकता प्राप्त करने का रास्ता होगा, लेकिन मुस्लिमों के पास ये एकमात्र विकल्प भी नहीं होगा।
पूर्वोत्तर के राज्यों में इस कारण हो रहा विरोध
नागरिकता कानून के विरोध का तीसरा कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में देखने को मिलता है, जहां बांग्लादेश से घुसपैठ एक बड़ी समस्या है। इन राज्यों में घुसपैठ की समस्या को धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाता और बांग्लादेश से आए सभी धर्म को लोगों को घुसपैठियां माना जाता है। चूंकि नागरिकता कानून बांग्लादेशी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता प्रदान कर देगा, ऐसे में मूल निवासियों को अपनी संस्कृति और भाषा खतरे में पड़ने का अंदेशा है।