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    सामाजिक कुप्रथाओं से लड़ते हुए हर क्षेत्र में परचम लहरा रहीं हरियाणा की डॉक्टर संतोष दहिया

    सामाजिक कुप्रथाओं से लड़ते हुए हर क्षेत्र में परचम लहरा रहीं हरियाणा की डॉक्टर संतोष दहिया

    लेखन प्रमोद कुमार
    Mar 03, 2020
    11:32 am

    क्या है खबर?

    "मैं 12-13 साल की थी। एक दिन हमारी गली में एक शराबी अपनी पत्नी को गालियां देते हुए पीट रहा था। हर कोई उसे बोल रहा था कि मत मार, लेकिन उसका डंडा कोई नहीं छीन रहा था। मुझ में पता नहीं कहां से हिम्मत आई कि मैं गई और शराबी से डंडा छीनकर उसे मारने लगी। ये देखकर मेरी मां ने घूंघट हटाकर कहा था कि तूने बहुत सही किया। उस दिन से मुझे हौंसला मिला।"

    प्रेरणा

    ...जब ताऊ देवीलाल ने दिया ईनाम

    "मैं उस समय कॉलेज में थी। सिरसा में नेशनल वॉलीबॉल टूर्नामेंट जीतने पर लड़के को 500 रुपये मिले और मुझे केवल 200 रुपये दिए गए। मैंने इसका विरोध किया और बराबरी की मांग की। उस वक्त ताऊ देवीलाल मुख्यमंत्री होते थे। उन्होंने मुझे बुलाया और शाबाशी दी। उन्होंने मुझे 500 रुपये ईनाम दिया और अपने साथ खाना खिलाया। तब उन्होंने कहा था कि तुम हरियाणा की महिलाओं की आवाज बनोगी।"

    जानकारी

    किसने कही ये बातें?

    ये बातें रोहतक में जन्मीं डॉक्टर संतोष दहिया ने कही हैं जो सर्वजातीय खाप पंचायतों की महिला प्रमुख और एशियन वूमैन बॉक्सिंग कमीशन की सदस्य हैं। राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित हो चुकीं संतोष सामाजिक कुप्रथाओं से लड़ते हुए महिलाओं की आवाज उठा रही हैं।

    बचपन

    ...जब घर वालों ने स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहनने से रोका

    संतोष ने हमें बताया कि बचपन में जोहड़ में भैंसो को पानी पिलाने और नहलाने के दौरान वो तैरना सीख गई। स्कूल की तरफ से उन्होंने राज्यस्तरीय स्विमिंग चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और चार मेडल जीते।

    संतोष आगे बताती हैं, "जब नेशनल लेवल पर जाने की बात आई तो वहां स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहनना जरूरी था। मेरी जिद करने के बाद भी घर वालों ने स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहनने की इजाजत नहीं दी। इसके बाद मैंने स्विमिंग छोड़कर वॉलीबॉल खेलना शुरू किया।"

    अनुभव

    खुद को मजबूत कैसे रखा?

    हमने संतोष से पूछा कि उन्होंने सफर के हर मोड़ पर खुद को मजबूत कैसे रखा?

    उन्होंने बताया, "लड़कियों को बचपन से ही हर चीज के लिए लड़ना पड़ता है। लड़कियों को स्कूल जाने से पहले घर के काम करने पड़ते थे। स्कूल से आकर घर, पशुओं और खेत का काम करना पड़ता था। मेरा सफर आसान नहीं रहा, लेकिन मेरी मां ने मुझे बहुत हिम्मत दीं। वो मेरी आदर्श हैं। वो खुद अनपढ़ थीं, लेकिन मुझे पूरा पढ़ाया।"

    सफर

    "जब सरकारें सो जाती हैं तो समाज को उठना चाहिए"

    संतोष ने बताया कि उन्होंने कॉलेज में अन्य लड़कियों के साथ मिलकर टीम बनाई थी, जो घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद करती थी। मास्टर्स करने के बाद उन्होंने पूरी तरह महिलाओं के लिए काम करना शुरू कर दिया।

    संतोष ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाया है। लाखों लोगों को वो इसके लिए जागरूक कर चुकी हैं।

    उनका कहना है, "जब सरकारें सो जाती हैं तो समाज को उठना चाहिए।"

    बयान

    कन्या भ्रूण हत्या, हॉनर किलिंग के खिलाफ जागरूकता की जरूरत

    संतोष ने कहा, "मैं खाप पंचायतों की महिला अध्यक्ष हूं। हम हॉनर किलिंग के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। खाप पंचायते कन्या भ्रूण हत्या रोकने के प्रयास कर रही हैं और इसके नतीजे भी दिखने शुरू हो गए हैं।"

    पुरानी प्रथाएं

    पर्दा प्रथा को खत्म करने के लिए काम कर रहीं संतोष

    संतोष ने बताया कि उन्होंने 'म्हारा बाणा पर्दा मुक्त हरियाणा' अभियान चलाया था। इसके तहत वो महिलाओं को पर्दा (घूंघट) हटाने के लिए प्रेरित करती हैं।

    उन्होंने हरियाणा के पीपली गांव को गोद लिया और उसे पर्दा मुक्त किया। इसके बाद उन्होंने कई महिला सरपंचों को पर्दे से बाहर आकर खुद पद की जिम्मेदारी संभालने को प्रेरित किया।

    संतोष ने बताया कि वो घरेलू हिंसा के मामले निपटाने में भी महिलाओं की मदद करती हैं।

    बयान

    समाज में महिलाओं की भागीदारी कम होने के कारण अपराध बढ़े

    संतोष ने बताया कि जिम्मेदारियों के चलते महिलाएं बाहर नहीं निकल सकती। इस वजह से महिलाओं की संख्या कम है और इसी वजह से उनके खिलाफ अपराध हो रहे हैं। इसे दूर करने में समय लगेगा।

    बयान

    "महिलाओं को बाहर आने से पहले लड़नी पड़ती है तीन लड़ाईयां"

    संतोष ने हमें बताया कि महिला को घर से बाहर निकलने से पहले तीन लड़ाईयां लड़नी पड़ती हैं।

    पहली लड़ाई खुद से होती है। उसे बाहर निकलने की हिम्मत जुटानी पड़ती है।

    दूसरी लड़ाई परिवार वालों के साथ होती है। अगर वो साथ नहीं देंगे तो वो बाहर नहीं आ पाएगी।

    तीसरी लड़ाई समाज से है। महिलाएं बाहर आती हैं तो समाज उस पर लांछन लगाता है। ये उसके लिए चुनौती है। इसके बाद बराबरी की बात आती है।

    बयान

    रैली के लिए महिलाएं चाहिए, लेकिन टिकट नहीं देंगे- संतोष

    हमने राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को लेकर संतोष से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण हों तो ज्यादा महिलाएं राजनीति में आएंगी।

    दूसरी बात है कि घर की जिम्मेदारी के साथ राजनीति नहीं हो सकती।

    संतोष ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां भी महिलाओं को स्वीकार नहीं कर रही। रैली और धरना प्रदर्शनों में उन्हें महिलाएं चाहिए, लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो प्रतिशत बहुत कम होता है।

    बयान

    महिलाओं को कम आंकने वाले मानसिक रूप से बीमार- संतोष

    संतोष कहती हैं कि लड़कियों को कमजोर समझने वाले लोग मानसिक रूप से बीमार है। देश की बेटियां ओलंपिक में मेडल जीत रही हैं, हवाई जहाज उड़ा रही हैं। महिलाओं को केवल मौके की जरूरत हैं। महिलाएं कुछ भी कर सकती हैं।

    बराबरी

    महिलाओं को आगे लाने के लिए सबसे जरूरी क्या?

    हमारे इस सवाल के जवाब में संतोष ने कहा, "सबसे जरूरी है कि मां-बाप अपने लड़के और लड़की को बराबर समझें। लड़कियों को आत्मसम्मान भरें। उन्हें कहे कि आत्मसम्मान जरूरी है। स्कूल-कॉलेजों में लड़कियों के लिए मोटिवेशनल प्रोग्राम चलें। उन्हें सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग के साथ-साथ दिमागी तौर पर भी मजबूत बनाएं। शिक्षा एक बड़ा हथियार है। अगर वो शिक्षित होंगी, उनमें आत्मविश्वास होगा और घर वालों का साथ होगा तो उनमें हिम्मत आएगी।"

    बयान

    महिलाएं हिम्मत बनाएं रखे, वो किसी से कमजोर नहीं- संतोष

    संतोष ने महिलाओं को मैसेज देते हुए कहा कि वो हिम्मत बनाएं रखे। महिलाओं में आत्मविश्वास जरूरी है। अपने टैलेंट को पहचाने और उसी दिशा में आगे बढ़ें। जो महिला किसी को जन्म दे सकती है वो किसी से कमजोर नहीं है।

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