#NewsBytesExplainer: क्या होती हैं वन-शॉट फिल्में और कितना पुराना है इनका इतिहास?
क्या है खबर?
एक फिल्म में कई सीक्वेंस होते है... एक सीक्वेंस में कई दृश्य..एक दृश्य में कई शॉट और एक शॉट में बहुत सारे फ्रेम्स।
एक शॉट को शूट करने में कई रीटेक लगते हैं। हालांकि, अगर आपसे कोई कहे कि पूरी फिल्म एक ही शॉट और एक टेक में बनी है तो आप यकीन करेंगे?
अगर नहीं तो आपको बता दें ऐसी कई फिल्में हैं, जिन्हें एक शॉट में बनाया गया है और उन्हें ही वन-शॉट फिल्में कहते हैं।
परिभाषा
क्या है वन-शॉट फिल्म की परिभाषा?
वन-शॉट फिल्म, फिल्म निर्माण की वह प्रक्रिया है, जिसमें कई दृश्य शूट करने और फिर उन्हें एक साथ एडिट किए बिना पूरी फिल्म को एक ही टेक में शूट किया जाए।
आसान भाषा में एक शॉट और बिना कट के पूरी फिल्म बनाना, जिसमें शॉट्स को मिलाने के लिए एडिटिंग की भी जरूरत ना पड़े।
यदि फिल्म में एक से ज्यादा शॉट का उपयोग किया जाता है तो ऐसा आभास होता है मानों कैमरा कभी बंद ही नहीं हुआ।
इतिहास
1948 में पहली बार हुआ था इस प्रक्रिया का इस्तेमाल
वन-शॉट फिल्मों का इतिहास बहुत पुराना है। इस प्रक्रिया को लोकप्रिय बनाने का श्रेय "सस्पेंस के मास्टर" अल्फ्रेड हिचकॉक को दिया जाता है।
कथित तौर पर उन्होंने ही सबसे पहले इस प्रक्रिया से एक फिल्म को एक ही टेक में शूट करने की चुनौती ली थी।
हिचकॉक ने अपनी फिल्म 'रोप' के लिए ऐसा किया, जो 1948 में रिलीज हुई थी। इसमें उन्होंने 10-10 मिनट लंबे टेक इस तरीके से फिल्माए कि एडिटिंग के दौरान कट्स को छुपाया जा सके।
जानकारी
कैसे की हिचकॉक ने फिल्म की शूटिंग
हिचकॉक ने इस फिल्म में कट को छुपाने के लिए कहीं किसी के बॉडी में जूम कर दिया था तो कहीं फर्नीचर में जूम किया था। ऐसी कई और फिल्में हैं, जिनमें निर्माताओं ने ऐसा दिखाने की कोशिश की है कि वह वन-शॉट फिल्में हैं।
चुनौती
शूटिंग में आती हैं कई तरह की चुनौती
इस तकनीक का उपयोग करके शूटिंग करने में बहुत सारी चुनौतियां आती हैं। ऐसे में इसे केवल बढ़िया डिजिटल कैमरे से ही शूट किया जाता है।
जब कलाकार चलता है तो कैमरा चलता है, जिसका अर्थ है कि लाइटिंग और एंगल बदलते हैं। इसका मतलब यह है कि किसी भी मुश्किल के बावजूद कैमरा शूटिंग करता रहे।
थोड़ी सी गलती का मतलब है सब कुछ फिर से शुरू करना और यही कारण है कि शूटिंग चुनौतीपूर्ण और महंगी होती है।
उदाहरण
कई हॉलीवुड फिल्में हुईं एक शॉट में शूट
बहुत सारे कैमरों के साथ शूटिंग करने और प्री-शूटिंग की कला प्रसिद्ध होने से पहले यह तकनीक आम हुआ करती थी।
ऐसे में वन-शॉट फिल्मों के उदाहरण सीमित हैं। इस तकनीक से फिल्म शूट करना बहुत बड़ा काम है, जो सटीकता और समन्वय की मांग करता है। इसमें गलतियों की गुंजाइश बहुत कम होती है।
'मैकबेथ' (1982), 'टाइमकोड' (2000), 'फिश एंड कैट' (2013), 'सन ऑफ शाऊल' (2015), 'ब्लाइंड स्पॉट' (2018) जैसी हॉलीवुड फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है।
जानकारी
इन फिल्मों में भी हुआ इस्तेमाल
2019 में फिल्म '1917' आई थी, जिसे ऐसे शूट किया गया था कि वह वन शॉट में फिल्माई गई फिल्म लगे। इसने ऑस्कर भी जीता था। ऐसी ही एक फिल्म 2014 में आई 'बर्डमैन'। इसे भी ऐसे शूट किया गया था कि यह वन-शॉट लगे।
भारतीय उदाहरण
ये हैं कुछ भारतीय उदाहरण
साल 2011 में 'सिक्स ऑवर्स विद टेररिस्ट्स' नामक एक 137 मिनट लंबी फिल्म आई थी, जिसे इसी तकनीक से शूट किया गया था। करण कश्यप के निर्देशन में बनी इस फिल्म को "निर्देशन शैली के मामले में भारत में अपनी तरह की पहली और दुनिया में सबसे लंबी वन-शॉट फिल्म" कहा गया था।
संजीव कौल की 'मैन नेकेड', पार्थिबन की 'इराविन निजल', अजु किजुमाला की 'ड्रामा' और हेमवंत तिवारी की 'लोमाड (द फॉक्स)' वन-शॉट फिल्मों के उदाहरण में शामिल हैं।
गाने
इन बॉलीवुड गानों को एक शॉट में किया गया शूट
जहां एक ही टेक में शूट की जाने वाली फिल्मों के उदाहरण हिंदी सिनेमा में कम हैं, लेकिन बॉलीवुड के कुछ प्रसिद्ध गाने हैं, जिन्हें इस तकनीक का इस्तेमाल करके एक ही शॉट में शूट किया गया है।
'दिल धड़कने दो' फिल्म का 'गल्लां गुडियां', 'आराधना' का 'रूप तेरा मस्ताना', 'मैं हूं ना' का 'चलें जैसी हवाएं', 'एजेंट विनोद' का 'राब्ता' और 'अंजाम' का 'बरसों के बाद' इसी तकनीक से शूट किए गए हैं।