'विजय 69' रिव्यू: 'सपनों' की इस कहानी में अपनी अदाकारी से खूब चमके अनुपम खेर
अनुपम खेर की गिनती बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेताओं में होती है। उन्होंने हिंदी सिनेमा को एक से बढ़कर एक फिल्मों की सौगात दी है। पिछली बार फिल्म 'द सिग्नेचर' में अपने शानदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीत चुके अनुपम नेटफ्लिक्स पर अपनी नई फिल्म 'विजय 69' लेकर दर्शकों के बीच हाजिर हाे गए हैं। अक्षय रॉय ने इस फिल्म की कहानी लिखी है और वो ही इसके निर्देशक भी हैं। आइए जानें कैसी है अनुपम की ये फिल्म।
दवा-दारू की उम्र में ट्रायथलॉन करने निकले विजय
इस साल अपना 69वां जन्मदिन मनाने वाले अनुपम फिल्म में भी 69 साल के व्यक्ति की भूमिका में हैं, जिसकी एक चिंता है कि इतनी उम्र तक भी उसने कुछ ऐसा नहीं किया कि उसके दुनिया से जाने के बाद लोग बोलें, "देखो क्या कमाल का काम करके मरा है।" इसके बाद विजय ठान लेता है कि वह ट्रायथलॉन पूरा कर नया रिकॉर्ड बनाएगा। विजय के दोस्त चंकी पांडे के साथ उसके घरवाले भी उसकी जिद से बड़े परेशान हैं।
जिस शख्स का एक पैर कब्र में है, वो ये कैसे करेगा?
विजय के दोस्तों की मानें तो अगर बुढ़ापे में वह डेढ़ किलोमीटर स्विमिंग, 40 किलोमीटर साइक्लिंग और 10 किलोमीटर की दौड़ लगाएगा तो बचेगा नहीं। अब विजय के सपने बीच में ही दम तोड़ देंगे या नहीं, ये तो आप फिल्म देखने के बाद जानेंगे।
किरदार में अपने साथ लेकर चलते हैं अनुपम
यह फिल्म अनुपम की है और उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा इंसाफ किया है। वह विजय के किरदार में इतन रच-बस जाते हैं कि पर्दे पर उन्हें दुखी देखकर दिल भर आता है और जब वह खुश होते हैं तो उनकी जीत अपनी सी लगती है और यही एक कमाल के कलाकार की खूबी है। जिस तरह से अनुपम ने 'सारांश' में एक बुजुर्ग का किरदार निभाकर महफिल लूटी थी, विजय बनकर भी वह अपनी छाप छोड़ जाते हैं।
सहायक कलाकारों का हाल
फिल्म में व्रजेश हीरजी, अंद्रिजा सिन्हा और मिहिर आहूजा जैसे कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है, लेकिन अनुपम ने उनका जिक्र करने की गुंजाइश नहीं छोड़ी। उधर चंकी अपनी ओवरएक्टिंग से निराश करते हैं। लगभग 2 घंटे की इस फिल्म का गीत-संगीत ठीक-ठाक है।
निर्देशन और लेखन में कसावट की कमी
निर्देशक अक्षय रॉय ने अब्बास टायरवाला के साथ मिलकर इस फिल्म की कहानी लिखी और कोई शक नहीं कि उन्होंने माता-पिता के सपनों पर बनाई अपनी इस दिल छू लेने वाली कहानी को नई पीढ़ी के साथ जोड़ा भी खूब है, लेकिन इसे बखूबी पर्दे पर परोसा नहीं। लिहाजा फिल्म बेहतरीन बनने से चूक गई। उधर पारसी बने चंकी का बोलने का अंदाज फिल्म में बड़ा अखरता है। निर्देशक को उनकी भूमिका पर ठीक से काम करना चाहिए था।
फिल्म देखें या ना देखें?
क्यों देखें? कुल मिलाकर पटकथा भले ही कमजोर हो, लेकिन यह सीधी-सादी सी कहानी आपका दिल जीतने का माद्दा रखती है और अगर आपको प्रेरणादायी, जुनून, दृढ़ संकल्प या दृढ़ता की कहानियां लुभाती हैं तो यह फिल्म यकीनन आपकी कसौटी पर खरी उतरेगी, वहीं अनुपम का अनुपम अंदाज भी इसे देखने लायक बनाता है। क्यों न देखें? अगर कोई हैरान कर देने वाली कहानी के चक्कर में 'विजय 69' देखने वाले हैं तो निराश हो जाएंगे। न्यूजबाइट्स स्टार- 3/5