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    #NewsBytesExplainer: क्या होती है क्राउडफंडिंग? जानिए कैसे श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा में की इसकी शुरुआत
    श्याम बेनेगल की फिल्म 'मंथन' से हुई क्राउडफंडिंग की शुरुआत

    #NewsBytesExplainer: क्या होती है क्राउडफंडिंग? जानिए कैसे श्याम बेनेगल ने भारतीय सिनेमा में की इसकी शुरुआत

    लेखन मेघा
    Feb 03, 2024
    02:25 pm

    क्या है खबर?

    किसी भी फिल्म को बनाने से पहले उसका बजट तय हो जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि जनता के पैसे से भी फिल्में बनती हैं।

    दरअसल, क्राउडफंडिंग के जरिए जनता इसमें सहयोग करती है, जिसे भारतीय समाज में मौजूद 'चंदा' का नया रूप समझा जा सकता है।

    अक्सर आपने देखा होगा कि लोग सोशल मीडिया के जरिए पैसे जुटाते हैं। यह क्राउडफंडिंग का ही तरीका है, जिसका इस्तेमाल फिल्में बनाने में होता है।

    आइए इसके बारे में जानें।

    विस्तार

    क्या है क्राउडफंडिंग?

    क्राउडफंडिंग का मतलब इसके नाम से ही समझ आता है। यह 2 शब्दों 'क्राउड' और 'फंडिंग' से मिलकर बना है, जिसका मतलब है कि वह फंड जो किसी निवेशक से नहीं बल्कि लोगों की मदद से जमा किया गया है।

    इसके जरिए किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बहुत सारे लोगों से छोटी-छोटी रकम इकट्ठा की जाती है।

    यह किसी खास प्रोजेक्ट, किसी की इलाज में मदद, फिल्म बनाने या सामाजिक कार्य के लिए हो सकता है।

    विस्तार

    कैसे होती है क्राउडफंडिंग?

    आमतौर पर फिल्म के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए एक प्लेटफॉर्म बना दिया जाता है, जिसके बाद लोग अपनी इच्छा से कितनी भी राशि उन्हें दे सकते हैं। इसके लिए किसी से भी जबरदस्ती नहीं की जाती है।

    क्राउडफंडिंग का यह कॉन्सेप्ट पश्चिम से लिया गया है, जहां बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट पर छोटे निवेश करके स्वतंत्र परियोजनाओं का समर्थन करते हैं।

    ऐसे में अब जनता क्राउडफंडिंग के जरिए किसी भी फिल्म की निर्माता बन सकती है।

    विस्तार

    श्याम बेनेगल को 5 लाख किसानों ने दिए थे 2-2 रुपये

    1976 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म 'मंथन' भारतीय सिनेमा की पहली क्राउडफंडिंग वाली फिल्म है, जिसे चंदा लेकर बनाया गया था।

    दरअसल, जब बेनेगल को फिल्म बनाने का विचार आया तो उन्हें निर्माता नहीं मिले। ऐसे में वर्गीज कुरियन ने उन्हें किसानों से 2-2 रुपये का चंदा लेने की बात कही।

    गुजरात के 5 लाख किसानों को उनका विचार पसंद आया और वो उनकी सहकारी समिति से जुड़ गए।

    इसके बाद किसानों से मिले 2-2 रुपये से फिल्म बनी।

    जानकारी

    कौन थे वर्गीज कुरियन?

    वर्गीज ने बेनेगल के साथ मिलकर 'मंथन' की कहानी लिखी थी, जिसमें किसानों और पशुपालकों के संघर्ष को दिखाया गया। वर्गीज को भारत में श्वेत क्रांति का ध्वजवाहक कहा जाता है। उनकी बदौलत दूध के प्रोडक्शन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर आया था।

    जानकारी

    'मंथन' को मिले थे 2 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 

    बेनेगल को 'मंथन' के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म और विजय तेंदुलकर को सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला था। इस फिल्म की भारत की ओर से ऑस्कर पुरस्कार में भी एंट्री हुई थी। इसमें नसीरुद्दीन शाह, कुलभूषण खरबंदा, स्मिता पाटिल और अमरीश पुरी शामिल थे।

    विस्तार

    ओनिर ने तीन दशक बाद बनाई 'आई एम'

    'मंथन' के तीन दशक से भी अधिक समय के बाद निर्देशक ओनिर 2011 में अपनी फिल्म 'आई एम' लेकर आए। इसके लिए उन्होंने 1 करोड़ रुपये क्राउडफंडिंग के जरिए इकट्ठा कर मिसाल कायम की थी।

    बाल शोषण और समलैंगिक संबंधों जैसे गंभीर मुद्दों पर आधारित इस फिल्म को दो श्रेणियों में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले थे।

    इस फिल्म ने भारत में कई स्वतंत्र फिल्म निर्माताओं को गंभीर विषयों पर फिल्में बनाने और क्राउडफंडिंग का सहारा लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

    जानकारी

    इन फिल्मों के लिए भी लोगों ने दिए पैसे

    रजत कपूर की फिल्म 'Rk/Rkay' (2021) भी क्राउडफंडिंग के जरिए बनाई गई, जिसके लिए 800 लोगों ने 100 से 50,000 रुपये तक दिए थे। इसके अलावा अलग-अलग भाषा में 'ग्रेटर एलिफेंट', 'कोठानोदी', 'लाइफ ऑफ एन आउटकास्ट' सहित कई फिल्में ऐसे ही बनाई गई हैं।

    विस्तार

    इन बातों का रखा जाता है ध्यान

    क्राउडफंडिंग के लिए सबसे पहले एक प्लेटफॉर्म चुनना जरूरी है। जैसे आज के समय में सोशल मीडिया सबसे बढ़िया साधन है, जिससे ज्यादा लोगों तक कम समय में पहुंचा जा सकता है।

    इसके बाद फंड लेने से पहले बताया जाता है कि इसकी जरूरत क्यों और किस फिल्म के लिए है। साथ ही फिल्म से जुड़ी बाकी जानकारी दी जाती है।

    इसके अलावा लोगों से अपील की जाती है कि वे भी दूसरों के साथ इस विचार को साझा करें।

    जानकारी

    स्वतंत्र क्षेत्रीय फिल्म निर्माता को मिल रहा लाभ

    क्राउडफंडिंग से सबसे ज्यादा लाभ स्वतंत्र क्षेत्रीय फिल्म निर्माताओं को मिल रहा है और इसलिए उनका रुख भी इसकी ओर बढ़ा है। इसकी मदद से उन फिल्मों को बजट मिल जाता है, जिन्हें बड़े स्टूडियो शायद नहीं बनाना चाहते या समर्थन नहीं देते हैं।

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