पंंकज उधास के संगीत का सफर स्कूल की प्रार्थना से हुआ शुरू, जानिए कैसे रचा इतिहास
क्या है खबर?
आज भले ही पंकज उधास हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रुमानी आवाज हमेशा संगीत प्रेमियों के कानों में गूंजती रहेगी।
हाल ही में गणतंत्र दिवस पर हुए पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई। जब पद्म भूषण सम्मान के लिए पंकज के नाम का ऐलान हुआ तो प्रशंसकों के जहन में फिर अपने चहिते गायक की यादें ताजा हो गईं और फिर उनके गीतों पर चर्चा चल पड़ी।
आइए जानें पंकज कैसे बने संगीत की दुनिया का इतना बड़ा नाम।
परिवार
जन्म, परिवार और शौक
गुजरात के जीतपुर से ताल्लुक रखने वाले पंकज का जन्म 17 मई, 1951 में हुआ था। पंकज के पिता एक जमींदार थे।
पंकज के 2 बड़े भाई मनहर उधास और निरमल उधास पहले से ही संगीत जगत में नाम कमा रहे थे।
पंकज ने अपने बड़े भाइयों के नक्शे कदम पर चलते हुए गायकी में ही करियर बनाने की ठानी और नन्हीं सी उम्र में अपनी आवाज से वो करिश्मा कर दिखाया, जिसे देख हर कोई हैरान रह गया था।
शुरुआत
6 साल की उम्र से शुरू हुआ था गाने का सिलसिला
पंकज का स्कूल उनके घर के बिल्कुल सामने ही था। जब स्कूल में 'एसेंबली' होती थी तो हेडमास्टर साहब उन्हें जोर से बुलाते थे और कहते थे चलो प्रार्थना कराओ। पंकज ने बताया था कि बस वहीं से उनके संगीत का सफर शुरू हो गया था।
उस समय उनकी उम्र 6 साल थी। प्रार्थना में ही कभी-कभार उनसे भजन या गीत भी सुने जाते थे। उनका स्टेज पर गाने का सिलसिला देखा जाए तो वहीं से शुरू हो गया था।
कमाई
10 की उम्र में पहली कमाई
उन दिनों भारत-चीन युद्ध चल रहा था। इसी दौरान लता मंगेशकर का गाना 'ऐ मेरे वतन के लोगों' रिलीज हुआ।
पंकज जब 10 साल के थे तो उन्होंने भाई मनहर के साथ पहली बार स्टेज पर 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाना गाया। उनके गीत से लोगों की आंखें नम हो गईं। दर्शकों में से एक आदमी ने इनाम में उन्हें 51 रुपये दिए। यह गाने के बदले उनकी पहली कमाई थी या कहें उनके जीवन की पहली कमाई थी।
फिल्मों में शुरुआत
इस फिल्म में पहली बार मिला गाने का मौका
पंकज ने न केवल गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों, छोटी जगह के लोगों के दिलों को गजल के सुकून से परिचित कराया, बल्कि आम आदमी के दुख-दर्द को पहचानने वाली आवाज भी बने।
जब पंकज मात्र 19 वर्ष के थे, तब उन्होंने फिल्मों में गाना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपना पहला गाना महान गायक किशोर कुमार के साथ साल 1970 में आई फिल्म 'तुम हसीन, मैं जवान' के लिए 'मुन्नी की अम्मा यह तो बता' गाया था।
गाने
ये गाने हुए सुपरहिट
पंकज ने 'चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल...' जैसे गीत पर खूब तालियां और सीटियां बटोरीं। साल 1988 में आई फिल्म 'एक ही मकसद' भले ही हिट नहीं हुई लेकिन पंकज का गाया ये गीत सुपरहिट हो गया।
1994 में आई सुनील शेट्टी की मोहरा फिल्म का सुपरहिट गीत 'ना कजरे की धार...' कोई नहीं भूल सकता। पंकज के गाए हिंदी गीतों में ये एक ऐसा गीत है, जो उस वक्त हर युवा की धड़कन हुआ करता था।
गाना
'चिट्ठी आई है …' ने बनाया रातों-रात स्टार
अब बात करते है एक ऐसे गीत की, जिसने पंकज को इतनी शोहरत दी, जिसके बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा।
साल 1986 में आई संजय दत्त की फिल्म 'नाम' के इस गीत ने पंकज को रातों रात स्टार बना दिया। यह गीत आज भी विदेश में बैठे उन लोगों को अपना सा लगता है, जब उन्हें अपने वतन की याद आती है। आज भी विदेश में बैठे बहुत से लोगों के घरों में पंकज का ये गीत बजता है।
सम्मान
साल 2006 में मिला था पद्मश्री सम्मान
ये तो बस एक बानगी है। ऐसे सैकड़ों गीत हैं, जो पंकज को हमेशा लोगों के दिलो में जिंदा रखेंगे।
भारत सरकार ने उन्हें साल 2006 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। ये पुरस्कार उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों मिला था।
उधर बात करें पंकज की निजी जिंदगी की तो उन्होंने 11 फरवरी, 1982 में धर्म की दीवार तोड़ते हुए फरीदा से शादी की थी, जिनसे वह अपने पड़ोसी के जरिए मिले थे। पंकज-फरीदा की 2 बेटिया हैं।