कैसी है राजकुमार राव और नुरसत भरूचा की 'छलांग'? पढ़िए रिव्यु
राजकुमार राव के अभिनय से सजी 'छलांग' काफी इंतजार के बाद आखिरकार अमेजन प्राइम पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म के ट्रेलर की रिलीज के बाद से ही फैंस इसके लिए काफी उत्साहित थे। फिल्म एक गैर-जिम्मेदार पीटी टीचर के उसके आत्मसम्मान, नौकरी और प्यार को बचाने की कहानी है। यह फिल्म उन लोगों के विचारों को भी चुनौती देती है जो बच्चों के खेल-कूद को को वक्त की बर्बादी समझते हैं। आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।
मोंटू की बिंदास जिंदगी से शुरु होती है कहानी
हरियाणा की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म में सर छोटूराम स्कूल में पीटी टीचर के तौर पर काम करने वाले महेंद्र सिंह हुड्डा उर्फ मोंटू (राजकुमार राव) को बच्चों की फिटनेस और खेल-कूद से कोई लेना-देना नहीं है। उसे स्कूल के बच्चों के भविष्य से भी कोई लगाव नहीं है। वह अपनी नौकरी को लेकर ऑवर कॉन्फिडेंट है, जो स्कूल की प्रींसिपल ऊषा (ईला अरुण) ने उसे उसके वकील पिता कमलेश सिंह हुड्डा (सतीश कौशिक) के कहने पर दी है।
मोंटू की जिंदगी में होती है प्यार की एंट्री
मोंटू सिर्फ आमदनी के लिए नौकरी कर रहा है। वह हमेशा मास्टर शुक्ला जी (सौरभ शुक्ला) के साथ घूमता रहता है। एक दिन स्कूल में कंप्यूटर टीचर नीलिमा उर्फ नीलू (नुरसत भरूचा) आती हैं, जिसे देखते ही मोंटू को प्यार हो जाता है, लेकिन नीलू एक घटना के कारण उससे नाराज है। मोटू, नीलू के करीब जाने की कोशिश कर ही रहा होता है तभी कहानी में ट्वीस्ट बनकर आते हैं इंदर मोहन सिंह उर्फ सिंह सर (मोहम्मद जीशान आयुब)।
यहां से पूरी तरह बदल जाती है मोंटू की जिंदगी
सिंह सर स्कूल में पीटी टीचर के तौर पर आए हैं। जो हर चीज में मोंटू से बेहतर है। आते ही वह नीलू से भी अच्छी बॉन्डिंग बना लेते हैं। मोंटू को उसका असिस्टेंट बना दिया जाता है। अब मोंटू की नौकरी पर खतरा मंडराने लगता है। ऐसे में वह सिंह सर को एक कॉम्पिटिशन के लिए चुनौती दे डालता है। अब आगे क्या होता है, वो आपको फिल्म देखने पर पता चलेगा।
राजकुमार राव से थी ज्यादा उम्मीदें
राजकुमार राव ने एक आलसी और लक्ष्यहीन पीटी टीचर का किरदार बखूबी निभाया है। हालांकि, वह अपने करियर में छोटे शहर के लड़के के इतने किरदार निभा चुके हैं कि इसमें उनका अंदाज नया नहीं लगता। हालांकि, सेकंड हाफ में उन्होंने जिस तरह अपनी टीम तैयार की वह देखना दिलचस्प था। जबकि जीशान आयूब ने मूंछों को तांव देते हुए एक रौबीले पीटी टीचर की भूमिका को बेहतरीन ढंग से जिया है। वह अपने एथलिटिक अंदाज में बिल्कुल फिट बैठे।
अन्य कलाकारों का काम रहा शानदार
दूसरी ओर नुसरत भरूचा ने भी एक छोटे शहर में रहने वाली हैं, लेकिन आज के जमाने की तरक्की पसंद लड़की के किरदार को भी बखूबी पर्दे पर उतारा है। इनके अलावा मोंटू की मां के किरदार में बलजिंदर कौर की भूमिका मजेदार है। वह अनोखे अंदाज से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खीचने में सफल रही हैं। जबकि सौरभ शुक्ला, ईला अरूण और सतीश कौशिक का काम भी अच्छा रहा।
हंसल मेहता ने छोड़ पाए अपनी छाप
निर्देशक हंसल मेहता अपनी फिल्मों में सामाजिक संदेश देने की कोशिश करते हैं। इस बार उन्होंने हर चीज को बहुत विस्तार में लेकिन कॉमेडी अंदाज में दिखाया है। कहानी सही दिशा में होने के बावजूद इसके स्क्रीनप्ले और पर्दे पर उतारने में कुछ कमी नजर आती है। कॉमेडी और दिलचस्प सीन्स के बाद भी आप पूरी तरह से इसके साथ कनेक्ट नहीं हो पाते है। कुल मिलाकर कहा जाए तो निर्देशन में थोड़ी और मेहनत इसे प्रभावी बना सकती थी।
ठीक-ठाक रहा म्यूजिक
फिल्म को दिलचस्प बनाने के लिए इसमें जबरदस्ती बहुत ज्यादा गाने डालने की कोशिश नहीं हुई है। जोशीले गाने के तौर पर 'ले छलांग' गाना ही है। जो ठीक-ठाक ही है और बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाता। फिल्म का हिट सॉन्ग 'टाइम स्पेयर नी करदा' सुनने में काफी आकर्षक है, लेकिन इसे सबसे आखिरी में दिखाया गया है। वहीं, ईशिता नारायण की सिनेमैटोग्राफी की बात करें तो उन्होंने कई सीन्स में प्रभाव छोड़ा है।
देखें या ना देखें?
फिल्म के डायलॉग्स काफी दमदार हैं। कुछ सीन्स काफी मजेदार बनाए गए हैं, जैसे मोंटू और नीलू की पहली डेट बहुत दिलचस्प रही। जिसमें मोंटू, नीलू को स्कूटर पर अपने पीछे बैठाने के लिए तकीया लगाकर ले जाता है। दूसरी ओर फिल्म में बच्चों के खेल-कूद को लेकर खूबसूरत संदेश दिया गया है, जिसे समझने के लिए कम से कम एक बार तो यह फिल्म देखी जा सकती है। हम 'छलांग' को पांच में से ढाई स्टार दे रहे हैं।