'72 हूरें' रिव्यू: आतंकवाद पर चोट करती फिल्म का विषय जानदार, पर रह गई ये कमी
क्या है खबर?
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक संजय पूरन सिंह की फिल्म '72 हूरें' ने शुक्रवार को सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है।
जिहाद की राह पर चलकर मासूमों की जान लेने की कहानी बयां करती यह फिल्म घोषणा होने के बाद से ही विवादों में है।
फिल्म के मेकर्स पर समुदाय विशेष की छवि खराब करने के आरोप लग रहे हैं तो निर्देशक और निर्माता पर मामला भी दर्ज हुआ है।
आइए जानते हैं कैसी है आतंकवाद पर चोट करती यह फिल्म।
कहानी
दो आतंकवादियों की कहानी है '72 हूरें'
यह कहानी पाकिस्तान के हाकिम (पवन मल्होत्रा) और साकिब (आमिर बशीर) की है, जो मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया पर आत्मघाती हमला करते हैं।
शहादत के बाद जन्नत में 72 हूरें मिलने और अल्लाह के फरिश्तों का उनका साया बनकर घूमने के बहकावे में आकर वह सबाब पाने की राह पर चलते हैं।
हालांकि, मरने के बाद की सच्चाई एकदम परे होती है और ऐसे में कहानी का ताना-बाना इनकी भटकी रूह के इर्द-गिर्द ही बुना गया है।
अभिनय
पवन और आमिर की दिखी उम्दा अदाकारी
हाकिम और साकिब के किरदार को मल्होत्रा और बशीर ने जीया है। ये दोनों फिल्म के अहम पात्र हैं, जिनके कंधों पर पूरा भार है।
मल्होत्रा हाकिम की पीड़ा और आंतरिक दुविधा को आसानी से व्यक्त करने में सफल रहे हैं तो बशीर ने अपने किरदार को बखूबी निभाया है।
फिल्म के आखिर में मल्होत्रा जिहाद को लेकर फैलाए जा रहे झूठ और अपने टूटते विश्वास को शानदार तरीके से दिखाने में सफल रहते हैं।
विस्तार
झकझोर देंगे कुछ सीन
'72 हूरें' के इक्का-दुक्का सीन को छोड़ दिया जाए तो यह पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है, जिसके कई शॉट्स कमाल के हैं।
धमाके के बाद हंसते खेलते लोग अचानक लाशों में तब्दील हो जाते हैं तो बच्चे की किलकारी से गूंज रहा वॉकर अगले ही पल आग के हवाले हो जाता है।
इसी तरह हर तरफ दिख रहे जले-कटे शरीर के बीच एक रंगीन पैर नजर आता है।
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर इसकी कहानी के साथ सटीक बैठता है।
निर्देशन
अच्छा विषय चुनने के बाद भी रह गई कमी
निर्देशक संजय के पास फिल्म बनाने के लिए निश्चित रूप से शानदार विषय था, लेकिन वह इसमें ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं।
निर्देशक का आतंकवादियों की भटकती रूहों को ब्लैक एंड व्हाइट में दिखाना फिल्म के लिए बढ़िया साबित होता है तो आतंक का खौफ दिखाने वाला माहौल इतना वीभत्स है कि वह रूह कंपा देता है।
हालांकि, इस सबके बाद भी वह दर्शकों को फिल्म से नहीं जोड़ पाते और यह मनोरंजन के पैमाने पर खरी नहीं उतरती।
विस्तार
दूसरे हिस्सा करता है बोर
आपको पहले सीन से आतंकवादियों के 72 हूरें मिलने की सच्चाई पता है इसलिए कुछ भी चौंकाने वाला नहीं लगता।
फिल्म का पहला हिस्सा अच्छा है, लेकिन 2 लोगों के बीच ही हो रही बातचीत दूसरे हिस्से में बोर करने लगती है।
फिल्म कई जगह इतनी धीमी हो जाती है कि आप समझ नहीं पाते कि ऐसा क्यों है।
आखिर में तो ऐसा लगता है कि आतंकवादी 72 हूरों का इंतजार कर रहे हैं और दर्शक इसके खत्म होने का।
निष्कर्ष
देखें या न देखें?
क्यों देखें?- अगर आपको गंभीर मुद्दों पर बनी फिल्में पसंद हैं तो यह आपके लिए सही साबित होगी। इस फिल्म को आतंकवाद की काली सच्चाई से रूबरू होने के लिए एक मौका दिया जा सकता है। इसके साथ ही फिल्म में कलाकारों का बेहतरीन अभिनय भी देखने को मिलेगा।
क्यों न देखें?- अगर आप इस फिल्म में मनोरंजन की तलाश कर रहे हैं तो यह आपको निराश करेगी। ऐसे में आप इसे न देखें तो बेहतर होगा।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5