रियल एस्टेट में GST दरें कम करने की तैयारी, घर खरीदना होगा सस्ता
अगर आप घर खरीदना चाहते हैं तो आपके लिए अच्छी खबर है। गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) काउंसिल रियल एस्टेट में GST दरों को कम करने की योजना बना रही है। जनवरी में होने वाली काउंसिल की बैठक में इस बारे में फैसला लिया जा सकता है। अगर यह फैसला होता है तो निर्माणाधीन फ्लैट खरीदना सस्ता हो जाएगा। GST काउंसिल की फिटमेंट कमेटी कमोडिटी पर लगने वाले टैक्स के स्लैब को तर्कसंगत बनाने पर काम कर रही है।
कमेटी के पास दो प्रस्ताव
फिलहाल कमेटी के पास दरें कम करने के लिए दो प्रस्ताव है। पहला बिल्डर को फुल इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के साथ 12 फीसदी GST दर और दूसरा निर्माणाधीन फ्लैट के लिए बिना ITC के GST दर को घटाकर 5 फीसदी करने का है। इसके लिए बिल्डर को यह साबित करना होगा कि उसने फ्लैट बनाने लिए 80 फीसदी माल GST नंबर वाले सप्लायर से खरीदा है। कमेटी अभी इस मामले के कानूनी और दूसरे पहलू देख रही है।
चुनाव से पहले सरकार का बड़ा कदम
इसके सहारे एक तरफ जहां निर्माणाधीन फ्लैटों की कीमत कम होंगी, वहीं दूसरी तरफ बिल्डर्स को अपना माल खरीदने के लिए GST के तहत रजिस्टर्ड सप्लायर के पास जाना होगा। अभी रियल एस्टेट सेक्टर में 18 फीसदी GST दरें लागू हैं। लोकसभा चुनाव से पहले सरकार इस फैसले को लागू कर इसका फायदा उठाना चाहेगी। अगले महीने होने वाली बैठक में इस बारे में फैसला लिया जा सकता है ताकि चुनावों से पहले इसका फायदा मिलना शुरू हो जाए।
फैसले से रियल एस्टेट की मंदी दूर होने की उम्मीद
अभी कई बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स में निर्माणाधीन फ्लैटों की संख्या काफी ज्यादा है। लोग निर्माणाधीन फ्लैट की जगह रेडी-टू-मूव फ्लैट लेना ज्यादा पंसद कर रहे हैं। इससे बिल्डर्स के पास निर्माणाधीन फ्लैट बच जाते हैं। पिछले कुछ समय से रियल एस्टेट सेक्टर में सुस्ती छाई है। इस वजह से स्टील, सीमेंट जैसे सेक्टर भी प्रभावित हो रहे हैं। सरकार के इस कदम से इन सेक्टर में फिर से तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है।
रेडी-टू-मूव फ्लैट पर टैक्स कम
अभी तक प्रोपर्टी की कीमत को दो हिस्सों में बांटा जाता है। इसके तहत कुल लागत का 80-85 फीसदी भाग बिल्डर और बचा 15-20 फीसदी भाग सरकार को टैक्स के रूप में दिया जाता है। दूसरी तरफ रेडी-टू-मूव प्रोपर्टी को GST के तहत नहीं रखा गया है। इसमें ग्राहक को केवल स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस देनी होती है जो प्रोपर्टी की कुल कीमत का 7-8 फीसदी भाग होता है।