बिहार: इस जिले में हर साल लगता है दूल्हों का बाजार, 700 साल पुरानी है परंपरा
क्या है खबर?
भारत में ऐसी कई परंपराएं हैं जिनके बारे में सुनकर हम हक्के-बक्के रह जाते हैं।
ऐसी ही एक परंपरा बिहार के मधुबनी जिले में भी है। यहां दूल्हों का बाजार लगाया जाता है।
आपको पढ़ने में हैरानी होगी, लेकिन यह परंपरा लगभग 700 सालों से चली आ रही है और पीपल के पेड़ों के नीचे नौ दिनों तक दूल्हों का बाजार लगाया जाता है।
चलिए आपको इस परंपरा के बारे में विस्तार से बताते हैं।
प्रक्रिया
लड़की के परिवार वाले करते हैं दूल्हे का चयन
मधुबनी जिले में दूल्हे के बाजार को 'सौराठ सभा' कहा जाता है।
जिले भर से मैथिली ब्राह्मण समुदाय के लोग अपनी बेटियों के साथ इस बाजार में आते हैं और अपनी पसंद से दूल्हे का चयन करते हैं।
हजारों दूल्हे अपने परिवार के साथ पारंपरिक लाल रंग की धोती और कुर्ता या फिर जींस और शर्ट पहनकर बाजार में मौजूद रहते हैं। दूल्हों का चयन उनके बैकग्राउंड और पढ़ाई-लिखाई के आधार पर तय किया जाता है।
जांच
रस्म पूरी करने से पहले होती है लड़के की योग्यता की जांच
लड़की के परिजनों को अगर कोई दूल्हा पसंद आता है तो दूल्हे की योग्यता और उसके बैकग्राउंड की जांच होती है। उसके जन्म प्रमाणपत्र और स्कूल के प्रमाण पत्रों जैसे कागजों को चेक किया जाता है।
अगर सब कुछ सही होता है तो फिर आगे की प्रक्रिया के लिए दोनों परिवारों के बीच बातचीत शुरू होती है और रीति-रिवाज और रस्में पूरी की जाती हैं।
बैकग्राउंड
अलग-अलग गोत्रों के बीच शादी और दहेज मुक्त समाज बनाना था परंंपरा का मकसद
स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह परंपरा कर्नाट राजवंश के समय अस्तित्व में आई।
इसकी शुरुआत राजा हरि सिंह ने की थी ताकि अलग-अलग गोत्रों के लोगों के बीच शादी हो सके। इसके अलावा इस परंपरा को लाने की दूसरी वजह शादियों को दहेज मुक्त बनाना भी था।
हालांकि रिपोर्ट्स की मानें तो इस बाजार में होने वाली शादियों में भी दहेज का प्रचलन है।