BHU में यौन शोषण के दोषी प्रोफेसर को किया गया बहाल, धरने पर बैठी छात्राएं
क्या है खबर?
यौन शोषण के आरोप में एक प्रोफेसर को फिर से बहाल करने पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की 50 से अधिक छात्राएं धरने पर बैठ गई हैं।
पिछले साल जंतु विज्ञान के प्रोफेसर शैल कुमार चौबे पर एक शैक्षणिक टूर के दौरान छात्राओं के साथ अश्लील हरकतें, अभद्रता और भद्दी टिप्पणियां करने का दोषी पाया गया था और उन्हें निलंबित कर दिया गया था।
आठ महीने बाद जून में उन्हें फिर से बहाल कर दिया गया था।
जानकारी
पिछले साल ओडिशा के शैक्षणिक टूर के दौरान हुई घटना
मामला पिछले साल अक्टूबर का है। प्रोफेसर चौबे के नेतृत्व में जंतु विज्ञान विभाग का एक शैक्षणिक टूर ओडिशा के भुवनेश्वर गया था। टूर से आने के बाद 36 छात्राओं ने विश्वविद्यालय की महिला शिकायत सेल से चौबे के अश्लील व्यवहार की शिकायत की थी।
आरोप
प्रोफेसर पर लगे थे ये आरोप
इस शिकायत में बताया गया था कि टूर का मुख्य उद्देश्य नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क जाकर जंतुओं के विषय में अध्ययन करना था, लेकिन चौबे ने पार्क को बहुत कम समय दिया और सभी छात्रों को कोणार्क स्थित सूर्य मंदिर ले गए।
यहां चौबे ने प्रतिमाओं की यौन क्रियाओं के बारे में बताते हुए अश्लील इशारे और टिप्पणियां कीं।
उन्होंने गाइड को सीधे 'मेन पॉइंट' पर आने यानि यौन क्रियाओं के बारे में बताने को भी कहा।
आरोप
एक छात्रा को समुद्र तट पर अकेले पकड़ा
एक छात्रा ने आरोप लगाया कि टूर के दौरान एक दिन उसे समुद्र तट पर अकेला पाकर प्रोफेसर चौबे ने उसे पीछे से कमर से पकड़ लिया और उसके कपड़ों के अंदर हाथ डाला।
अन्य छात्राओं को भी चौबे के व्यवहार से परेशानी थी, जो उन्हें यौन शोषण की तरह लगता था।
लेकिन जब उन्हें समुद्र तट पर हुई घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने शिकायत करने का फैसला किया।
जांच
जांच समिति ने आरोपों को पाया सही
महिला शिकायत सेल के अलावा प्रोफेसर चौबे की शिकायत BHU के कुलपति राकेश भटनागर से भी की गई थी।
शिकायत मिलने के बाद कुलपति ने चौबे को निलंबित कर दिया और आंतरिक शिकायत समिति (ICC) को मामले की जांच के आदेश दिए।
40 दिन की अपनी जांच में ICC ने सभी पीड़ित छात्राओं, गवाहों और आरोपी के बयान दर्ज किए।
बयानों के आधार पर ICC ने प्रोफेसर चौबे पर लगे आरोपों को सही पाया।
फैसला
एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने लिया चौबे को बहाल करने का फैसला
प्रोफेसर चौबे के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश करने वाली इस रिपोर्ट को दो बार कुलपति की अध्यक्षता वाली एग्जीक्यूटिव काउंसिल (EC) के सामने रखा गया।
पहली बार जब जनवरी में रिपोर्ट को EC के सामने रखा गया तो इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया।
अगली बार जब जून में रिपोर्ट फिर से EC के सामने आई तो उसने प्रोफेसर चौबे के निलंबन को निरस्त करते हुए उसे बहाल कर दिया।
चौबे ने जुलाई में विश्वविद्यालय आना शुरू किया।
विरोध
छात्रों की मांग, प्रोफेसर को नौकरी से निकाला जाए
विश्वविद्यालय से इस फैसले से छात्र बेहद नाराज हैं और प्रोफेसर चौबे को नौकरी से बाहर निकालने की मांग की है।
छात्रों का कहना है, "शिकायत के समय निलंबित किए गए प्रोफेसर को अब वापस बहाल कर लिया गया है। जब छात्राओं के आरोपों के मामले में ICC में प्रोफेसर को दोषी पाया गया है तो उन्हें सिर्फ चेतावनी देना काफी नहीं है। हमारी मांग है कि प्रोफेसर को विश्वविद्यालय से निकाला जाना चाहिए।"
बयान
कुलपति ने 'हल्की सजा' के आरोपों को किया खारिज
कुलपति ने प्रोफेसर चौबे को 'हल्की सजा' देकर छोड़ने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है और इसका असर उनकी नौकरी के रिकॉर्ड पर पड़ेगा।
उन्होंने कहा, "इसके बाद अब प्रोफेसर चौबे किसी भी संस्थान में किसी भी प्रशासनिक पद पर नहीं रह सकेंगे। उन्हें कभी भी शैक्षणिक टूर की जिम्मेदारी भी नहीं दी जाएगी।"
छात्रों ने कुलपति के उनसे बात करने की मांग की है।
दूसरा पक्ष
प्रोफेसर चौबे ने कहा, मेरी प्रगति से जलने वाले लोगों ने लगाए आरोप
प्रोफेसर चौबे ने मामले में खुद को निर्दोष बताया है।
उनका कहना है, "मेरे खिलाफ लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं। मेरे प्रगति से जलने वाले कुछ लोगों ने मेरे खिलाफ ये आरोप लगाए थे। मेरे अलावा तीन अन्य प्रोफेसर, दो लैब अटैंडेंट और एक अभिभावक भी टूर पर छात्रों के साथ थे। मैंने केवल छात्रों के शिक्षक और अभिभावक के तौर पर अपने कर्तव्य का पालन किया ताकि शैक्षणिक टूर सफल रहे।"