#MovieReview: दमदार एक्टिंग लेकिन 'चमन बहार' के निर्देशन ने किया निराश, देखने से पहले पढ़ें रिव्यू
क्या है खबर?
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर छोटे शहरों की कहानियों को काफी तरजीह दी जाती है। इन्हीं में से एक फिल्म 'चमन बहार' भी है, जिसे हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया है।
इस फिल्म के लिए 'एक अनार सौ बीमार' की कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है।
अगर आप भी इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो चलिए पहले जान लेते हैं कैसी है यह फिल्म और क्यों इस पर यह कहावत सटीक बैठती है।
शुरूआती कहानी
अलग पहचान बनाने पर है फिल्म का शुरुआती हिस्सा
फिल्म में छत्तीसगढ़ के कस्बे लोरमी की कहानी को दिखाया गया है।
फिल्म की शुरुआत में ही पता चल पाता है कि वन विभाग के चपरासी का बेटा बिल्लू (जितेंद्र कुमार) गांव में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है, जिसके लिए वह एक पान की दुकान खोल लेता है।
वह गांव के उस छोर पर जाकर दुकान लगाता है जहां कभी कोई परिंदा भी पर नहीं मारता। ऐसे में बिल्लू का धंधा पूरी तरह से चौपट पड़ा है।
कहानी दिलचस्प का हिस्सा
चौपट धंधे के बीच गांव में आती है रिंकू
एक दिन बिल्लू की दुकान के सामने एक परिवार रहने आता है। इसके बाद बिल्लू की किस्मत बदल जाती है क्योंकि इस परिवार की मॉडर्न लड़की रिंकू (रितिका बडियानी) के गांव के दुकानदार से लेकर नेता तक सभी दीवानें हैं।
उसे देखने दिनभर लोग बिल्लू की दुकान पर बैठे रहते हैं। बिल्लू भी रिंकू से प्यार करने लगता है।
अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि रिंकू किससे प्यार करेगी? क्या बिल्लू फेमस होगा? इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।
अभिनय
एक बार फिर दिल जीत लेगी जितेंद्र की एक्टिंग
फिल्म में जितेंद्र की एक्टिंग के बारे में बात करें तो वह डिजिटल दुनिया के सुपरस्टार बनते जा रहे हैं। 'पंचायत' के बाद उन्होंने फिर साबित कर दिया है कि उनके लिए कोई किरदार मुश्किल नहीं है।
बिल्लू की भूमिका में जितेंद्र असल जिंदगी के किसी पनवाड़ी जैसे दिख रहे हैं। पूरी फिल्म उन्हीं पर फोकस है, लेकिन कहीं नहीं लगा कि वह अपने किरदार से भटके हों। उन्होंने यहां अपनी भाषा को भी शानदार तरीके से पकड़े रखा।
स्टार कास्ट का अभिनय
सभी किरदारों ने किया एक्टिंग के साथ इंसाफ
फिल्म के बाकी स्टार कास्ट की एक्टिंग की बात करें तो रिंकू का किरादर निभाने वाली रितिका को पूरी फिल्म में एक भी डायलॉग नहीं दिया गया है। हालांकि, फिल्म में उनके एक्सप्रेशन्स काफी शानदार हैं। उन्हें सिर्फ एक गुड़िया की तरह ही इस्तेमाल किया गया है।
वहीं, शिला (आलम खान), आशू (अश्विनी कुमार), सोमू (भुवन अरोड़ा) और छोटू (धीरेंद्र तिवारी) से जैसी एक्टिंग करवाई उन्होंने बेहतरीन तरीके से पर्दे पर उतारा है।
निर्देशन
निराश करते हैं अपूर्वधर
प्रकाश झा को असिस्ट करने वाले अपूर्वधर बडगैयां ने इस फिल्म से बतौर निर्देशक अपने करियर की शुरुआत की है। उन्होंने एक शहरी लड़की के प्रति गांव के लड़कों का पागलपन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखा दिया है।
फिल्म के कई हिस्सों में ऐसा लगा कि वह एकतरफा प्यार करने वालों को आइडिया दे रहे हैं कि लड़की को कैसे इम्प्रेस कर सकते हैं, जैसे लड़की के कुत्ते के साथ खेलना, बिल्लू का कार्ड खरीदना। ऐसा पुरानी फिल्मों में होता था।
जानकारी
कैसा है म्यूजिक और सिनेमैटोग्राफी?
फिल्म के म्यूजिक की बात करें तो कहानी के साथ-साथ बैकग्राउंड में आपको म्यूजिक भी सुनने को मिलता रहता है। गांव की देसी भाषा में फिल्म के गाने सुनने में काफी अच्छे लगते हैं। वहीं, अर्को देव मुखर्जी की सिनेमैटोग्राफी भी ठीक-ठाक है।
समीक्षा
देखें या न देखें?
कहानी देखकर आपको ऐसा लगेगा कि इसमें लड़की का पीछा करना, उसे घूरने जैसी हरकतों को प्रमोट किया जा रहा है। वहीं शराब, सिगरेट और तंबाकू जैसी चीजों का जमकर प्रमोशन किया गया है। पूरी फिल्म एकदम सपाट चलती है।
अगर आपके पास नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन है तो फिल्म देखने में कोई बुराई नहीं हैं, लेकिन इसके लिए स्पेशल सब्सक्रिप्शन लेना नहीं बनता।
किरदारों की एक्टिंग और म्यूजिक के लिए हमने इसे पांच में से दो स्टार दिए हैं।