ISRO का पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) 1980 के दशक में विकसित तकनीक पर आधारित है, जिसका इस्तेमाल भविष्य में नहीं किया जा सकता। इसलिए ISRO ने एक साल में NGLV का डिजाइन तैयार करने का लक्ष्य रखा है। जिसका पहला प्रक्षेपण 2030 में होगा।
इस रॉकेट की जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में 10 टन पेलोड और पृथ्वी की निचली कक्षा में 20 टन पेलोड ले जाने की क्षमता होगी। यह रॉकेट हरित ईंधन संयोजन जैसे मीथेन और तरल ऑक्सीजन या केरोसिन और तरल ऑक्सीजन द्वारा संचालित होगा।
ISRO के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया था कि NGLV से फिर से इस्तेमाल होने वाले स्वरूप में 1,900 डॉलर (लगभग 1.6 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम पेलोड और उत्सर्जनीय स्वरूप में 3,000 डॉलर (लगभग 2.5 लाख रुपये) प्रति किलोग्राम की लॉन्च की लागत आ सकती है।
ISpA-E&Y एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि 2020 में भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 960 करोड़ डॉलर (लगभग 79,000 करोड़ रुपये) थी, जो 2025 तक 1,280 करोड़ डॉलर (लगभग 1,05,000 करोड़ रुपये) तक बढ़ जाएगी।
अभी केवल दो अंतरिक्ष स्टेशन ही पूरी तरह से कार्यरत हैं। एक है अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) और दूसरा चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन (TSS)। हाल ही में रूस ने भी ISS से हटके अपना अगल स्टेशन बनाने का ऐलान किया था।