दशाश्वमेध घाट गंगा आरती का स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने 10 घोड़ों की बलि देकर इस घाट का निर्माण किया था। सूर्यास्त के समय तीर्थयात्री आरती की रस्म देखने के लिए इस स्थान पर आते हैं। कुछ लोग पानी के अनुष्ठान देखने के लिए नाव भी किराए पर लेते हैं।
अगर आप घाट की सीढ़ियों पर बैठकर कुछ क्षण शांति से बिताना चाहते हैं तो इसके लिए सिंधिया घाट या शिंदे घाट बेहतरीन है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी घाट पर अग्नि भगवान का जन्म हुआ था। इस घाट पर एक छोटा-सा भगवान शिव का मंदिर भी है, जो आंशिक रूप से नदी में डूबा हुआ है।
काशी विश्वनाथ मंदिर एक धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ ऐतिहासिक स्थल भी है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में विराजित ज्योतिर्लिंग देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसकी वजह से इस मंदिर को वाराणसी का सबसे खास मंदिर कहा जाता है।
यह मंदिर विशेशर गंज के पास स्थित है, जो सुबह 5:00 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। किंवदंतियों के अनुसार, यहां भगवान शिव ने काल भैरव का रूप धारण करके ब्रह्मा का पांचवां सिर काटा था और कहा कि उनका नया रूप काल भैरव पापों को दूर करने के लिए वाराणसी में हमेशा रहेगा।
यह मंदिर 20वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह भगवान राम को समर्पित है। मंदिर ठीक उसी स्थान पर बनाया गया, जहां संत गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में रामचरितमानस लिखी थी। यह मंदिर सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 3:30 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है।