साल 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी, इसके तहत सिंधु घाटी में बहने वाली तीन पूर्वी नदियों (रवि, सतलज, व्यास) पर भारत का, जबकि तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान का अधिकार है।
इस संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान से बीच साल 1978 से विवाद शुरू हुआ, जब भारत ने पश्चिमी नदियों पर बांध परियोजनाओं का निर्माण शुरू किया। पाकिस्तान ने आपत्ति जताई कि इन परियोजनाओं के निर्माण से नदियों का प्रवाह कम हो जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने 2015 में भारत की किशनगंगा और रातले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स (HEP) पर कुछ तकनीकी आपत्तियां जताई थीं और इनके निस्तारण के लिए अंतरराष्ट्रीय कोर्ट की मध्यस्थता की मांग की थी।
भारत ने कहा, "पाकिस्तान द्वारा 2015 में HEP पर आपत्तियों के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की मांग और फिर 2016 में इस अनुरोध को वापस लेने के बाद मध्यस्थता के लिए कार्ट का रुख करना एकतरफा कार्रवाई है, जो अनुच्छेद (9) का उल्लंघन है।"
इस संधि के अनुसार, भारत को सिंधु घाटी से निकलनी वाली नदियों के 20 प्रतिशत पानी के इस्तेमाल की अनुमति है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह संधि रद्द होती है या इसमें संशोधन होता है तो इससे भारत को फायदा होगा।