कई लोगों को लगता है कि फिल्म बड़ी होने के कारण बीच में इंटरवल किया जाता है। भारतीय फिल्मों में दर्शकों को ध्यान में रखकर कुछ समय का ब्रेक दिया जाता है ताकि उस बीच वे अपनी सीट से उठ सकें और कुछ खाने-पीने का लुत्फ उठा सकें।
हालांकि, इंटरवल होने के पीछे तकनीकी वजह है। दरअसल, पहले सिनेमाघरों में फिल्में रील में चला करती थीं और हम तकनीकी रूप से उतने समृद्ध नहीं थे।इ यह उस दौर की बात है्, जब देश में सिनेमाघरों की शुरुआत ही हुई थी।
फिल्में रील में चला करती थीं तो एक रील के खत्म होते ही दूसरी रील को लगाने में कम से कम 5 से 10 मिनट लगते थे। इन रील्स के जरिए फिल्मों की स्क्रीनिंग होती थी। प्रोजेक्शनिस्ट को रील बदलने के लिए समय चाहिए होता था, इसी काम के लिए फिल्मों के बीच में ब्रेक लिया जाता था।
मशीनें इतनी गर्म हो जाती थीं कि उन्हें ठंडा करना भी जरूरी होता था। 10 मिनट के ब्रेक में दर्शक खाने-पीने की चीजें तलाशने लगे। इसी बीच बाजारवाद ने अपनी पैठ जमाई। इंटरवल में होने वाली कमाई थिएटर की कुल आय का बड़ा हिस्सा होती है।
हॉलीवुड फिल्मों में इंटरवल नहीं होत है। दरअसल, ये फिल्में 'थ्री-एक्ट स्ट्रक्चर' को ध्यान में रखकर लिखी जाती हैं। पहले एक्ट में किरदारों को स्थापित किया जाता है। दूसरे में संघर्ष या टकराव के बारे में बात की जाती है और आखिरी एक्ट में टकराव का समाधान होता है।
कई लोग मानते हैं कि फूड बिजनेस में मुनाफे के कारण मल्टीप्लेक्स मालिक इंटरवल की प्रथा के विरुद्ध नहीं जाना चाहते हैं। एक अनुमान के अनुसार, सिनेमा हॉल या मल्टीप्लेक्स मालिक की कमाई का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा खाने और पीने की चीजों से आता है।
यश चोपड़ा की आखिरी फिल्म 'इत्तेफाक' पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें पहली बार कोई इंटरवल नहीं था। इसी फिल्म के बाद यश ने अपनी खुद की कंपनी यशराज फिल्म्स की नींव डाली। राजेश खन्ना अभिनीत इस फिल्म की कुल अवधि 1 घंटा 41 मिनट है।