शकीरा राजसी परिवार से आने वाली एक अरबपति महिला थीं, जो कंस्ट्रक्शन का बिजनेस करती थीं। 1965 में 18 की उम्र में शकीरा ने मद्रास से अपनी मां की सगी बहन शाह ताज बेगम के बेटे अकबर मिर्जा खलीली से लव मैरिज की।
शकीरा की अकबर से 4 बेटियां हुईं। 1982 में उनकी मुलाकात मुरली मनोहर मिश्रा उर्फ स्वामी श्रद्धानंद से हुई, जिसके बाद 1984 में शकीरा ने अकबर से तलाक ले लिया और 1986 में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत श्रद्धानंद से शादी कर ली।
अकबर अक्सर काम के चक्कर में बाहर रहते थे। शकीरा को लगता था कि अकबर उन्हें समय नहीं दे रहे। ऐसे में श्रद्धानंद के पास उन्हें समय मिला। मीठी-मीठी बातें मिलीं। प्यार हो गया। उनकी बेटियों को इससे काफी झटका लगा। सिर्फ एक बेटी थी सबा, जो मां से दूर नहीं रह पाई।
शादी के 4-5 साल तक सबकुछ ठीक रहा। शकीरा की दौलत पर श्रद्धानंद ऐशो-आराम की जिंदगी बिताने लगा। अचानक एक दिन शकीरा गायब हो गईं। सबा ने कई फोन किए, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। मां की खोज में दरबदर भटक रहीं सबा बेंगलुरु चली आईं।
अप्रैल, 1991 में श्रद्धानंद ने पत्नी शकीरा की करोड़ों की प्रॉपर्टी हड़पने के लिए पहले चाय में नींद की दवा देकर उन्हें बेहोश किया। फिर बेंगलुरु की रिचमंड रोड पर बने बंगले में ले जाकर ताबूत में बंद कर जिंदा दफना दिया।
29 अप्रैल, 1994 की रात ठीक 3 साल बाद बेंगलुरु क्राइम ब्रांच का कॉन्स्टेबल शराब के ठेके पर बैठा था, तभी नशे में धुत श्रद्धानंद का नौकर कॉन्स्टेबल के सामने डींगे हांकने लगा। कहने लगा कि जिस शकीरा को पुलिस ढूंढ रही है, वो तो जिंदा ही नहीं है।
श्रद्धानंद को मौत की सजा सुनाई गई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में आजीवन कारावास में बदल दिया। श्रद्धानंद जेल में सजा काट रहा है। कानून के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी की लाश को खोदकर निकालने का वीडियो बनाया गया।
इस मर्डर केस की पूरी कहानी 'डांसिंग ऑन द ग्रेव' में दिखेगी। इसका नाम भी इस मामले से जुड़ी एक घटना से प्रेरित है। दरअसल, शकीरा को जमीन में गाड़ने के बाद श्रद्धानंद ने उसी घर में पार्टी की थी, जहां खूब नाच-गाना हुआ था।