A-ग्रेड बड़े बजट की फिल्मों को मिलता है, जिसमें बड़े कलाकार काम करते हैं। ऐसी फिल्मों के सेट भव्य होते हैं और इन्हें बनाने में अच्छा-खासा पैसा खर्च होता है। कपड़ों से लेकर तकनीक तक, सबकुछ उच्च दर्जे का होता है।
विनोद तलवार बॉलीवुड में B-ग्रेड फिल्मों के जनक हैं। असल में उन्हीं की फिल्म 'रात के अंधेरे में' से इंडस्ट्री में B-ग्रेड फिल्मों का दौर शुरू हुआ था, जो 1987 में रिलीज हुई थी। B-ग्रेड फिल्मों में कलाकर ज्यादा चर्चित नहीं होते। इन फिल्मों में अश्लीलता परोसी जाती है।
हर साल करीब 100 B-ग्रेड फिल्में आती हैं। इनका औसत बजट 40 लाख रुपये के आसपास होता है और अवधि 70 से 80 मिनट की होती है। कैटरीना कैफ ने तो अपने करियर की शुरुआत ही B-ग्रेड फिल्म 'बूम' से की थी। फिल्म में उनके कई आपत्तिजनक दृश्य भी थे।
इस तरह की फिल्मों का बजट बहुत ही कम होता है। इतना कम कि कभी-कभार कलाकारों की कमी पड़ने पर फिल्म के किसी टेक्निशियन या सेट पर काम करने वाले स्पॉट बॉय को ही एक्टर बना दिया जाता है। कहानी बेतुकी होती है और अश्लीलता की भरमार होती है।
कांति शाह B और C-ग्रेड फिल्मों के बादशाह हैं। 90 के दशक में उन्होंने फिल्म 'गुंडे' का निर्देशन किया था, जो जबरदस्त हिट रही। शाह की 'अंगूर', 'शादी बसंती की हनीमून गब्बर का' और 'डाकू रामकली' जैसी न जाने कितनी फिल्में सुपरहिट रहीं।
90 के दशक में इन फिल्मों का खूब क्रेज होता था। B और C टाइप शहरों के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर ऐसी फिल्में दिखाने का एक माध्यम बनते रहे हैं। हालांकि, पिछले 10 सालों में सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के खत्म होने पर इन फिल्मों का बाजार भी तेजी से कम हुआ।
धर्मेंद्र, शक्ति कपूर, मिथुन चक्रवर्ती, मोहन जोशी, रजा मुराद जैसे कलाकारों ने घंटे की दर से काम कर ऐसी फिल्मों को इज्जत बख्शी। कादर खान, कश्मीरा शाह, मल्लिका शेरावत, अनु अग्रवाल, हेलेन, पायल रोहतगी और शकीला जैसी अभिनेत्रियां भी इन फिल्मों का हिस्सा रहीं है।