'कजरा मोहब्बत वाला', 'कभी आर कभी पार', 'लेके पहला-पहला प्यार' जैसे गाने आज की युवा पीढ़ी भी गुनगुनाती है। इन गानों को गाने वालीं शमशाद बेगम ने संगीत इंडस्ट्री को ऐसे ही कई यादगार गाने दिए हैं।
शमशाद ने गाने की कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन अच्छी आवाज होने के कारण वह स्कूल में प्रार्थना गाया करती थीं। शमशाद के पिता उनकी गायिकी के खिलाफ थे, लेकिन उनके मामा उनको प्रोत्साहित करते थे।
यहां गुलाम हैदर को उनकी आवाज पसंद आई और उन्हें ऑल इंडिया रेडियो, लाहौर में गाने का मौका दिया। शमशाद के गाने को लेकर उनके घर में खूब खटपट हुई। हालांकि, एक शर्त के बाद उनके पिता इसके लिए राजी हो गए।
गायिकी की इजाजत देने के लिए उनके पिता ने शर्त रखी कि वह कभी भी कैमरे के सामने नहीं आएंगी। ना ही अखबारों में उनकी फोटो छपेगी। इसके अलावा उन्हें बुर्का भी पहनना होगा।
संगीतकार ओपी नैय्यर उनकी आवाज को 'टेंपल बेल' (मंदिर की घंटी) कहते थे। 2009 में उन्हें प्रतिष्ठित ओपी नैय्यर पुरस्कार दिया गया था। इसी साल उन्हें पद्म भूषण से भी नवाजा गया था।