'पथेर पांचाली' भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकार सत्यजीत रे के करियर की पहली फिल्म थी और दिलचस्प बात यह है कि अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने न सिर्फ देश, बल्कि दुनियाभर में खूब नाम कमा लिया था। आज भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री एक भी ऐसी फिल्म नहीं पाई है, जो 'पथेर पांचाली' की टक्कर ले सके।
रे शुरुआत में ब्रिटिश विज्ञापन एजेंसी में बतौर जूनियर विजुअलाइजर काम करते थे। इसी दौरान उन्हें विभूति भूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास 'पथेर पांचाली' को चित्रित करने का मौका मिला। इस उपन्यास ने उनके दिल में एक गहरी छाप छोड़ी थी। इसी बीच रे ने फिल्म बनाने की ठानी थी।
रे की इस फिल्म पर कोई भी निर्माता पैसे लगाने को तैयार नहीं था। निर्माता की तलाश में 2 साल गुजर गए। थक-हारकर उन्होंने खुद फिल्म पर पैसे लगाए। फिल्म के लिए रे ने अपनी पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए। अपनी बीमा पॉलिसी बेची और दोस्तों-रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए।
बिना तनख्वाह के रे ने अपने काम से 1 महीने की छुट्टी ली और फिल्म की शूटिंग शुरु कर दी। करीब 4 हजार फीट बनी फिल्म को जितने भी निर्माताओं को रे ने दिखाया, सभी ने ठेंगा दिखा दिया। फिर आखिरकार पश्चिम बंगाल सरकार की मदद से फिल्म बनकर तैयार हुई।
26 अगस्त, 1955 में जब 'पथेर पांचाली' कोलकाता में रिलीज हुई तो 2 हफ्ते मामूली प्रदर्शन किया, लेकिन तीसरे हफ्ते सिनेमाघर दर्शकों से खचाखच भर गए। आधिकारिक प्रविष्टि के रुप में फिल्म कान्स फिल्म फेस्टिवल पहुंची, जहां इसने 'बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट' का विशेष पुरस्कार जीता।
ब्रिटिश फिल्म इतिहासकार पनैलपी ह्यूस्टन ने 'पथेर पांचाली' देख 1963 में कहा था, "रे का सिनेमा ही आगे चलकर भारत का सिनेमा होगा।" जापान के महान निर्देशक अकिरा कुरोसावा ने कहा, "रे की फिल्में ना देखना ऐसा है, जैसे आप बिना चांद और सूरज को देखे दुनिया से चले जाएं।"
'पथेर पांचाली' को वैंकूवर फिल्म समारोह में 5 पुरस्कार मिले थे। कान्स सहित गोल्डन ग्लोब जैसे कई बड़े पुरस्कार जीत चुकी 'पथेर पंचाली' कई दफा दुनियाभर की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में अपना नाम दर्ज करा चुकी है।