महाराजा रणजीत सिंह के बेटे हीरा सिंह की हवेली इस इलाके में थी, वहीं से नाम आया हीरामंडी, जिसने यहां अनाज मंडी का निर्माण कराया। कुछ को ये भी लगता रहा है कि खूबसूरत लड़कियों के चलते इसका नाम हीरामंडी पड़ा।
मुगलकाल के दौरान अफगानिस्तान और उजबेकिस्तान की महिलाएं हीरामंडी में रहने के लिए आई थीं। उस समय 'तवायफ' शब्द को गंदी निगाहों से नहीं देखा जाता था। ये वो दौर था, जब तवायफें सिर्फ राजा-महाराजाओं का मनोरंजन करती थीं।
पाकिस्तान के लाहौर में बसा हीरामंडी एक समय तवायफों के घुंघरुओं की खनक से गूंजता था, लेकिन आज यहां संगीत के नाम पर ढोलक और गिटार की दुकानें हैं। पहले यह नृत्य कला और संगीत का गढ़ हुआ करता था।
मुगल दौर में यहां राजाओं की दासी और मुलाजिम रहते थे, इसलिए इसे 'शाही मोहल्ला' भी कहते थे। बड़े घरों के लोग यहां अपने बच्चों को संगीत सीखने भेजा करते थे। हीरामंडी को बाजार-ए-हुस्न के नाम से भी जाना जाता है।
हीरामंडी एक ऐसा इलाका था, जहां की तवायफें देशभर में मशहूर थीं। उनकी खूबसूरती के किस्से मशहूर थे। इस मंडी में रहने वाली तवायफों के कभी बड़े लोग दीवाने हुआ करते थे। यहां की महिलाओं की एक खास धमक हुआ करती थी।
मुगलकाल में हीरामंडी में सुरों की महफिल सजती थी। आस-पास के बाजारों में भी खूब रौनक रहती थी। एक खास बात ये हुआ करती थी कि जिस्म का सौदा इन बाजारों में नहीं होता था। जिस्म का सौदा करने वाली वेश्या अलग होती थीं और नाचने-गाने वाली अलग।
जब मुगलदौर ढलने लगा तो लाहौर कई बार विदेशी आक्रमणकारियों के निशाने पर आया। अफगान आक्रमणकारियों ने यहां के तवायफखानों को उजाड़ दिया। फिर इस इलाके में वेश्यावृत्ति पनपने लगी। ब्रिटिश राज कायम हुआ तो उन्होंने हीरामंडी को वेश्यावृत्ति की जगह माना।
ब्रिटिश शासनकाल में हीरामंडी की चमक ऐसी फीकी पड़ी कि आज तक इसकी रौनक नहीं लौटी। आजादी के बाद सरकार ने यहां आने वालों के लिए कई बेहतरीन इंतजाम करवाए, लेकिन बात नहीं बनी। हीरामंडी में बचपन से ही लड़कियों को संगीत की तालीम दी जाती थी।
दिन के समय हीरामंडी पाकिस्तान के किसी सामान्य बाजार जैसी ही होती है, जहां तमाम तरह के सामान और संगीत के उपकरण मिलते हैं। यह खाने-पीने के शौकीनों का अड्डा भी है, लेकिन शाम होते ही यह रेड लाइट एरिया में बदल जाता है।