काले कोट पैंट में आनंद इतने हैंडसम लगते थे कि लड़कियां उन्हें देखकर छत से छलांग लगा देती थीं। उनके काले कोट पहनने के दौरान कुछ लड़कियों की आत्महत्या की घटनाएं सामने आईं। यह देख कोर्ट ने आनंद को काला कोट पहनकर घूमने पर पाबंदी लगा दी।
आनंद ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की शिक्षा पूरी की। वह आगे भी पढ़ना चाहते थे, लेकिन उनके पिता के पास उनकी आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। यहीं से आनंद का बॉलीवुड में सफर भी शुरू हो गया। जब 1943 में देव साहब मुंबई आए थे तो उनकी जेब में सिर्फ 30 रुपये थे।
सपनों की नगरी में खुद के सपनों से दूर जाता देख उन्होंने 85 रुपये मासिक वेतन के साथ एक जगह क्लर्क की नौकरी कर ली। इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश आर्मी के सेंसर ऑफिस में काम किया। वहां उनका काम सेना के अधिकारियों के लिखे खतों को पोस्ट करने से पहले पढ़ने का था।
बॉलीवुड की मशहूर प्रेम कहानियों में सुरैया और देव आनंद की प्रेम कहानी का जिक्र जरूर होता है। हालांकि, अलग धर्म होने की वजह से सुरैया की नानी को यह रिश्ता बर्दाश्त नहीं था। उन्होंने दोनों को एक नहीं होने दिया। इसके बाद सुरैया उनके प्यार में ताउम्र कुंवारी रहीं।
सुरैया से दूर होकर आनंद अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए और एक बार फिर उनके जीवन में प्यार ने दस्तक दी। उनका दिल आया अभिनेत्री कल्पना कार्तिक पर। 1954 में फिल्म 'टैक्सी ड्राइवर' के सेट पर आनंद ने कल्पना को देखा था। फिर एक दिन दोनों ने लंच ब्रेक में शादी कर ली।
यह एकमात्र भारतीय फिल्म रही, जिसे 2008 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में शामिल किया गया। यह सबसे ज्यादा 7 फिल्मफेयर पुरस्कार पाने वाली पहली हिंदी फिल्म बनी। भारत की तरफ से इस फिल्म को ऑस्कर में भी भेजा गया था।