मुलायम को पहलवानी का शौक था। 1965 में वह एक कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे थे। उस दौरान वहां संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी नेता चौधरी नत्थूसिंह भी मौजूद थे जो मुलायम से काफी प्रभावित हुए और उन्हें राजनीति में ले आए।
एक बार एक सम्मलेन में एक कवि कविता पढ़ रहे थे। यह कविता सरकार के खिलाफ थी तो वहां तैनात एक दरोगा (इंस्पेक्टर) ने उन्हें रोकते हुए माइक छीन लिया। उस दौरान वहां बैठे मुलायम ने मंच पर पहुंचकर दरोगा को उठाकर पटक दिया।
1984 में मुलायम की कार पर गोलीबारी हुई। तभी उन्होंने सबकी जान बचाने के लिए अपने समर्थकों से अपनी मौत की अफवाह फैलाने को कहा। सभी जोर-जोर से 'नेताजी मर गए, उन्हें गोली लग गई' चिल्लाने लगे। इससे हमलावरों को लगा कि मुलायम सच में मर गए और उन्होंने गोलीबारी बंद कर दी।
1967 के चुनाव में मुलायम को वाहन और ईंधन का खर्च मुहैया कराने के लिए ग्रामीणों ने इस हद तक समर्थन किया था कि पैसा जुटाने के लिए सभी गांव वालों ने एक समय का खाना छोड़ दिया था।