दिल्ली समेत उत्तर भारत में महसूस किए गए भूकंप के हल्के झटके
दिल्ली और आसपास के इलाकों में रविवार सुबह को भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए हैं। दिल्ली के अलावा पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी लोगों को भूकंप के झटके महसूस हुए। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.2 थी और इसका केंद्र अफगानिस्तान में फैजाबाद से करीब 80 किलोमीटर दूर था। बतौर रिपोर्ट्स, भूकंप के झटके महसूस होने पर कुछ लोग अपने घरों से बाहर निकल आए। हालांकि, किसी भी प्रकार के कोई नुकसान की खबर नहीं है।
जमीन के 220 किलोमीटर नीचे था भूकंप का केंद्र
भारत के राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के अनुसार, भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के फैजाबाद के पास था और रिक्टर स्केल पर 5.2 तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया। एजेंसी ने ट्वीट कर बताया कि भूकंप के झटके सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर महूसस किए गए और यह जमीन की सतह से करीब 220 किलोमीटर की गहराई में स्थित था। बता दें कि भूकंप के झटके पाकिस्तान के कुछ शहरों में भी महसूस किए गए।
अफगानिस्तान में आए भूकंपों से भारत को कितना खतरा?
विशेषज्ञों के मुताबिक, अफगानिस्तान में आए 6 से अधिक तीव्रता के भूकंपों से भारत में ज्यादा नुकसान होने की संभावना कम है। साल 2018 में भी इसी तरह का 6.1 तीव्रता का भूकंप इस जगह के बहुत करीब आया था और इसे भी उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्सों में महसूस किया गया था। बता दें कि पिछले साल पूर्वी अफगानिस्तान में 6.1 तीव्रता के भूकंप में 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे।
जोन-4 में स्थित है दिल्ली
भारत को भूकंप के क्षेत्र के आधार पर चार हिस्सों (जोन-2, जोन-3, जोन-4 और जोन-5) में बांटा गया है, जिसमें जोन-2 सबसे कम और जोन-5 सबसे अधिक खतरे वाला जोन है। जोन-5 में उत्तर-पूर्व के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से आते हैं। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से और दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण भारत के ज्यादातर हिस्से जोन-2 में आते हैं।
क्यों आते हैं भूकंप?
धरती के नीचे मौजूद टेक्टोनिकल प्लेटों में हलचल के कारण भूकंप आते हैं। इसके अलावा ज्वालामुखी फटने और परमाणु हथियारों की टेस्टिंग भी भूकंप ला सकती है। भूकंप की तीव्रता को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है और इसका अंदाजा भूकंप के केंद्र से निकलने वाली तरंगों से लगता है। भूकंप का केंद्र सतह से जितना नीचे होगा, तबाही भी उतनी ही कम होगी। दुनिया के कई क्षेत्र संवेदनशील हिस्से में पड़ते हैं और वहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं।